Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 56
________________ पाइअकहासंगहे। ॥२३॥ विजउरक(वरुणदाडिमउच्छूनारंगअंबाई ॥५२॥ वरनालिकेरवायमउतित्तिय(१)पभिइरम्मवत्थूणि । दहिथरमंडीमोयगसोहा-18 नवकारलियगरुयखाई ॥ ५३ ॥ सवाई वि ठाणाई अटुत्तरसट्ठिसंखजुत्ताई । उज्जमणे जिणपुरओ ढोयइ कुमरो ससत्तीए ॥ ५४॥ एवं कयउजमणो जिणगुरुचलणे सया वि सो नमइ । नवकारं अद्रुत्तरसयवारं गुणइ एगमणो ॥ ५५ ॥ अन्नदिणे अत्याणे सौभाग्यकुमरो चिट्ठइ जाव उबविट्ठो । ताव य एगो पत्तो जोगिंदो बहुकलाकलिओ ॥ ५६ ॥ आसीवायं दाउं भणियं तेणं कुमार ! | सुन्दरसाहेमि । नहगामिणिबहुरूविणिविजं तुम्हाण साहिजा ।। ५७ ॥ भणियं कुमारेणं जो हवेह परपत्थणाइदीणमणो । पुरिसस्स * कथानकम्। तस्स जम्मो भूमीभारावहो नूणं ।।५८|| जोगिंद! हबउ एयं तेण वि मणियं तुम मसाणंमि । आगच्छसु रयणीए इय कहिउं तत्थ सो पचो ॥ ५९॥ कुमरो तमि मसाणे पओससमयमि ज्झचि संपत्तो । उवविट्ठो एगमणो जोगिंदो निच्चले ज्झाणे ॥६०॥ पंचपरमेट्ठिमंतं ज्झायंतो चिट्ठए कुमारो वि । आयड्डियकरवालो दिसाउ सहा निरिक्खंतो।। ६१ ॥ खणमित्तेणं पत्तो भयजणओ तत्थ रक्खसो एगो । कुमराभिमुहो न हु तस्स तीरए किं पि सो काउं ॥ ६२ ॥ नवकारमंतकवयाहिट्ठियदेहं इमं मुणेऊण । असमत्थो उवसग्गं काउं कुमरं तओ भणइ ॥ ६३ ॥ नवकारपहावेणं तुट्ठो तुह देमि दो वि विजाओ । तं जंपेइ कुमारो परोक्यारिकदिनमणो ॥ ६४ ॥ एयस्स चिय विजा दुन्नि वि वियरेसु पत्थमाणस्स । सो भणइ तुमं जोगिंद ! हबसि कुमरस्स जइ भिच्चो ।। ६५ ॥ ता देमि तुज्झ विजं सो वितओ जंपए हवउ एयं । विजाजुयलं वियरइ दुई पि हु तत्थ सो असुरो ॥ ६६ । सो पत्तो अईसणमह कुमरो वि हु गओ निए गेहे । मिचीभावगएण वि चिट्ठइ सह जोगिणा निच्चं ॥६७।। आयासेणं गमणागमणं इच्छाइ दुन्नि वि कुणंति । अन्नदिणे रायगिहे पचा सुहस उणसंजुत्ता ॥ ६८॥ एगमि जाव गोरी- P ॥२३॥ कमर तो नहु तस्स तीरए रवालो दिसाउ उबविडो एमागच्छस रयणीय BCCIEWERS

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