Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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कहासंगहे ।।
तपोविषये मृगाक
रेखाकथानकम्।
॥२६॥
तं नमिउं ज्झत्ति नियपुरे पत्ता। सयलो विमए कहिओ वुत्तंतो जणणिजणयाण ॥ २८ ॥ दुहियमणेहिं तेहिं मुक्का हं इत्थ सहिदुगसमेया । आणेऊणं निच्चं ताओ मह भोयणं दिति ॥ २९ ॥ चउवरिसअंबिलाणं अंतो मज्झं हविस्सई अन्ज । पारणयं नियनयरे तत्थ इयाणिं गमिस्सामि ॥ ३० ॥ जं तुम्हेहिं पुढं तं कहिय(य) मुद्धमाणसाइ मए । तुम्हाणं पि हु चरिअं मुणिउं इच्छामि अहमिहि ॥ ३१ ॥ अह तीए तेण सत्वं सवित्थरं कहियमप्पणो चरियं । सुणिऊण घरानाहं मोरं सा हरिसिया जाया ॥ ३२ ॥ चिंतइ य इत्थ अहवा कयंमि ( भवंमि ) अन्ने वि हवउ मज्झ पिओ। एसो चिय अत्थि फलं एयस्स तवस्स जइ कहवि ॥ ३३ ॥ इय जा कुणंति वत्तं आयाउ सहि(ही)उ चल्लिया कुमरी । मोरेण गहियहियया सुन्ना पत्ता निए नयरे ॥ ३४ ॥ कुणिऊण संघवच्छल्लमणुवमं पारणं कयं तीए । सुन्नमण च्चिय चिट्ठइ निचं पि हु मुकवावारा ॥ ३५॥ अन्नदिणे सहिवग्गेण पुच्छिया दुक्खकारणं कुमरी । तं साहिऊण सवं पभणइ सा दीणमुहकमला ॥३६ ॥ उजेणीए सामी सो च्चिय मोरो महीवई मज्झ । लग्गइ देहे अहवा जालामालाउलो जलणो ॥ ३७॥ तं सवं सहिवग्गेण साहियं तीए जणणिजणयाण । मोरनिववरणकजेण पेसिओ तेहिं नियमंती ॥ ३८ ॥ खणमित्तेण नहेणं गच्छंतो परिसरे विसालाए । नयरीए संपत्तो सुइसउणविवजिओ सचिवो ॥ ३९ ॥ नहतीरे बहुयाओ चियाउ कद्वेहिं सजमाणाओ । पिच्छिय एगो पुरिसो पुट्ठो दुहिएणऽमच्चेण ॥ ४० ॥ सो भणइ इत्थ रजं पालइ नाएण मोरनरनाहो । आयासेणं भमिओ सो निच्चं एइ संझाए.
॥ ४१ ।। अज पुणो संजायं मासदुगं तस्स कत्थ वि गयस्स । न हु आगच्छइ जेणं मउ ति मनिजए तेण ॥ ४२ ॥ न हु P] दुइअदिणं कहमवि चिट्ठइ कयावि मोरनिवो। तविरहे अंतेउरमियाणि साहिस्सए जलणं ॥ ४३ ॥ इय वुत्तं मुणिउं मंती
॥२६ ॥

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