Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 53
________________ पालो || २ || तस्स पिया महलच्छी ताणं सोहग्गसुंदरभिहाणो । पुत्तो कयत्थनामो सव्यकलापारसंपत्तो || ३ || कयवयमिचसमेओ कुमरो कीलाइ अन्नदियहंमि । धवलगिहाउ पहाए विणिग्गओ चरणचारेण ॥ ४ ॥ पिच्छड़ बंदणमालापडायज्झयपंतिचित्तदल्लीओ | कुमरो चउक्कतियचच्चरेसु हट्टेसु गेहेसु ।। ५ ।। पुच्छर सावयमेगं सिट्टिसुयं धम्मदासनामाणं । को इत्थ अदीसह महसवो १ सो वि हु कहेह ।। ६ ।। एगदिणे कुमर ! मए मुत्तिमईए नईए पत्तेणं । दिट्ठे गग्गरितुलं तरमाणं एगबीजउरं ।। ७ ।। तं गहिउं नरवहणो समध्वियं तेण नियदइयाए । महलच्छीए ती वि आहारिय रंजियमणाए ॥ ८ ॥ भणियं ना ! अन्वो एयस्स रसो न तीरए कहिउं । ता मज्झं पइदियहं देसु फलं एरिसं एगं ।। ९ ।। अह जइ न देखि एयं भोयणमवि कह विनो कुणिस्सामि । तो दुहिएणं रन्ना तव्वुत्तं पुच्छिओ अहयं ॥ १० ॥ कहियं मए वि लद्धं मुतिमईए नई तरमाणं । तत्तो जंप निवई असग्गहं चयसु देवि ! इमं ॥ ११ ॥ न मुणिजड़ नइमज्झे कओ वि एयं समागयं कह वि । मह वयणेणं दइए ! तेण तुमं भोयणं कृणसु ।। १२ ।। तहवि हु तीए बु (च) त्तं भोयणतंबोल कीलियाईयं । नरनाहो विन झुंज दुहिओ लोओ तओ सब्बो || १३|| अह महसारो मंती चउद्दिसं पेसए निए पुरिसे। गग्गरिसमबीजउरं कओ वि आह निएऊण ॥ १४ ॥ एगो नइमुत्तरिउं जा किं पि हु जाइ दूरमल्लवणे । गग्गरिसमबीजउरे निएइ ता सुन्नवाडीए ॥ १५ ॥ आहरहि (६) जहिच्छाए एगं गहिऊण ताण मज्झाओ । मइसारमंतिहत्थे समप्यए सो वि महिवइणो ।। १६ ।। निवई विनियपि - are आहरियं ती हिट्ठहिययाए । आणीयकलो पुरिसो रयणीए मरणमावन्नो || १७ || दुइयदिणे दुइएणं समाण (णि) ए मरह सो विरगणीए । पइदियहं एयंमि य ( एव मए ) ग्रह को वि न तं समाणे ।। १८ ।। नरनाहेणं भणिया दहए ! न हु को वि

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