Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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मो उमवंताण खलु सिद्धी ॥ ४० ॥ वेसपरावत्तेणं रयणीसमयमि धवलगेहाओ । निग्गच्छ असहाओ जाइ तओ रन्नमज्छंमि ।। ४१ ।। खिचंमि तत्थ पुरिसेोगेण पर्यपिओ महीनाहो । को सि तुमं १ पहिओ हं छुहिओ मह किं पि वियरेसु || ४२ || दिनासु कचरीसुं रन्ना गहियासु तो भणइ पुरिसो । रयणपुरं गंतूणं जावागच्छामि ता चिट्ठ ॥ ४३ ॥ इरिसपरो नरनाहो चित आहाणओ इमो सच्चो । जं पिच्छंतो वल्लि स च्चिय चलणंमि मे लग्गा ॥ ४४ ॥ पमणइ दे (वे) संत रिओ सच्च कह कहसु तत्थ तुह गमणं १ । सो भगइ जोगिणीओ वडउवरिं चडिय जंति तर्हि || ४५|| तो हं वडविवरडिओ जामि तर्हि लहइ भोयणं पुरिसो | दे (वे) संत रिओ जंपइ अहमवि तत्थेव गच्छस्सं ॥ ४६ ॥ तो दुनि वि सिद्धवडे संलुका रुद्धसासनीसासा | मिलियाउ जोगिणीओ सिद्धवडो तत्थ उप्पडिओ ॥ ४७ ॥ खणमेचेणं पत्तो नहेण रयणउरपरिसरे एसो । उत्तरिऊणं राया संपत्तो नयरमज्झमि ॥ ४८ ॥ अवलोयह तं सयलं रयणीए विहरिसपूरियच्छाहो । ज्झायंतो एगमणो सुंदरिलाहो कहं होही ॥ ४९ ॥ रयणविणिम्मिय देव उलपंति उज्जोय णेण रयणीए । न हु तत्थ अंधयारस्स होइ कइयावि अवयासो ॥ ५० ॥ कत्थवि गायणलोयं गायंतं सुणइ विविहभंगीहिं । देवउले पिच्छणयं कत्थ वि बहुनाडए नियइ ॥ ५१ ॥ वद्धावणयमहूसव - महं पिच्छे कत्थ वि गिमि । तो पुट्टेणं कहिओ नरेण केणावि वृत्तो ॥ ५२ ॥ धणसारो नामेणं सिट्ठी धूया य सुंदरी तस्स । पाणिग्गहणं होही कल्ले गोधूलिवेलाए ||५३ || इय सुणिउं सो चिंतइ किमिहागमणं निरत्ययं होही । अइदुक्ख दुक्खियमणो तह विहु नो धीरिमं चयइ ॥ ५४ ॥ उक्तं च- दुक्खं जणेह गरुयं लहुयं पि पओयणं असिज्झतं । अइदुहजणणं पि पुणो सिज्झतं जणइ सुहमउलं ।। ५५ ।। जं किंपि हु पुवभवे समज्जियं अत्थि कह वि रे ! हियय है। तं चिय हवइ अवस्सं मा

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