Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 48
________________ पाइअ संगहे। ॥१९॥ REACTICS हियपंमि दुक्खिया वाढं । चिंतइ किं हयविहिणा मज्झ कयं निकिवमणेण ? ॥ २४ ॥ अह उजेणिपुरि पद सहोअरो तीए शीलप्रमावे वयणसारो चि । ववहारेण चलिओ तं जंपइ सुंदरी ज्झत्ति ॥ २५ ॥ चम्ममओ चित्तजुओ कीडाठाणं सुओ इमो भाय ! सुन्दरिदेवीनियपाहुडस्स उवरिं अप्पसु सिरिविक्कमनिवस्स ॥ २६ ।। सो चलिओ संपत्तो कमेण उजेणिन यरिमझमि | भरिऊण 18 कथानकम्। रयणथालं उवरिट्ठियकीररमणिकं ॥२७॥ गच्छेइ रायभुवणे विक्कमरायस्स नमइ पयकमले । अप्पेइ पाहुडं पि हु पिच्छइ राया | तहिं कीरं ।। २८ ॥ अहिणवपाहुडमेयं कोऊहलकारयं अइसुरम्मं । अवलोइऊण कीरं राया पुच्छेइ सिट्ठिसुयं ॥ २९ ॥ किं एस | कीरराया ? सिद्विसुओ भणइ सामि! निसुणेसु । रयणवई (सुन्दरिदेवी) मइणीए मज्झ इहं पेसिओ देव! ॥३०॥ हरिसपरो चिंतंतो || राया नेमित्तिएण विभत्तो । कीरपहावा होही अप्पुबो कोइ तुह लाहो ॥ ३१ ॥ एगंतं काऊणं पुच्छइ नेमित्तियं स साहेइ । कीरोयरस्स मज्झे सामिय ! चिट्ठेइ कि पि फुडं ।। ३२ ।। दारेऊणं कुच्छि एक पिच्छेइ तत्थ वरहारं । कत्थूरियाउ लिहियं लेहं दुइया(य) उ वाएइ ।। ३३ ।। सुहयसिरोमणि ! विक्कम ! तुम्ह गुणे निच्चमेव ज्झाएमि । सो होही को दियहो दीससि नयणेहिं जत्थ तुमं ॥ ३४ ॥ निवणागस्स बिइमा जणणीजणएहि सिद्विपुत्तस्स । वइसाहकसिणवारसि रविमि वारिजयं होही ॥३५॥ मह देहं नाह! तुम जलणो वा छिवह न उण इयरनरो । एयं मुणिउं पिययम ! जे उचियं कुणसु तं सिग्धं ॥ ३६ ।। | तो लेहत्थं नाउं हरिसचिसाएहिं पूरिओ राया। कह जियइ सा वराई मह विरहे चिंतए दुहिओ ॥ ३७ ॥ रयणउरे गंतवं | उजेणीए समुद्दमग्गेण । जोयणसयाई वीसं लग्गं उण कल्लदियहमि ॥ ३८ ॥ तो अग्गियवेयालं भिचं सुमरेइ सिग्धगमणत्थं । सो आगंतुं पभणइ न हु पहु ! जलहिमि मह सत्ती ॥ ३९ ॥ आसाचुको राया चिंतइ पुरिसेण उजमो नेव । कइयावि हु १९॥ 43434%

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