Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 46
________________ पाइअकहासंगहे। शीलप्रमावे सुन्दरिदेवीकथानकम्। ॥१८॥ मित्तसंजुत्तो । सपिओ य सूरनिवई गंधवपुरंमि संपत्तो॥ ११९ ॥ नियजणणीजणयाणं दुहिअमणाणं मिलंति ते सत्वे । अपुवं किं पि सुहं संजायं संगमे ताणं ।। १२० ।। अह तत्थ मंतिपुत्तेण साहिअं सयलमवि नियं चरियं । नववहुयं जयलच्छि पाडइ चलणेसु ससुराणं ॥ १२१ ॥ अंतसमयंमि तेहिं रजंमि निवेसिओ निओ कुमरो । अह मूरनिवो पालइ रजदुर्ग नायसंपन्नो ॥ १२२ ॥ जयलच्छी नियनाहं देवयमिव ज्झायए सया हियए । सीलपरा धम्मजुया दियहाई गमेइ सोक्खेणं ॥ १२३ ॥ जयसेणनिवेणेसा लोहं भत्ति पि दंसिउं भणिया । जयलच्छीए तह वि हु मणमा वि न खंडियं सील ॥ १२४ ॥ नियआउं पालेउं पत्ता मरिऊण देवलोगंमि । सिरिजयलच्छीदेवी निरुवमसीलप्पहावेण ॥ १२५ ॥ इति शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवीकथानकं समाप्तम् । ->__ शीलप्रभावे सुन्दरिदेवीकथानकम्-[सो] मणवंछियसिद्धी(दि) देवाणं सुदुल्लहा(ई) वि पावेइ । जो पावइ(पालइ) वरसीलं सुंदरिदेवीए नाएण ॥१॥xxxxxxx वे वडणयं हवइ खंडगुलयंमि । सारिरमणमि मारो उपसग्गो सहसत्थेसु ॥ २॥ पीलिजइ तह उच्च जुन्नेसु देउलेसु उद्धारो। दंडो छत्ते दीसइ न उणो लोयस्स कइयावि ॥ ३ ॥ अमरसु(पृ)रीए समाणं नामेणं अस्थि रयणउरं नयरं । घणकतिरयणनिम्मियगयणग्गविलग्गदेवउलं ॥ ४॥ निच्चं दुहिओ लोओ मणवंछियविहवसारजुत्तो वि । दाणसमयंमि को वि हुन दीसए मग्गणो जत्थ ॥ ५॥ उज्जमबुद्धिपरकमधीरिमउवयारनायगुणकलिओ । तं पालइ अरिदमणो अरिदमणो नाम पुहहबई॥६॥ सोहग्गपिम्मलायनरूवसीलगुणभूसिया निचं । तस्सं ACA4 ॥१८॥

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