Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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चरियमेयं सर्व साहिस्सए सम्मं ॥ ७३ ॥ तं वयणं सोऊणं अइविम्हियमाणसो महीनाहो । नयरजणसिट्टिपुत्तयधम्मवईजसवईसहिओ ॥ ७४ ॥ धवलगिहाओ पत्तो उजाणे ज्झत्ति नमइ केवलिणं । वियरेद धम्मलाई सो वि तओ तस्स सुहजणयं ॥ ७५ ॥ उचियासणोवविढे सयलजणे तत्थ केवली भणइ । संदेहहरणकारणमेयं वयणं सुण नरिंद ! ॥ ७६ ॥ ज न हु संभाविजइ तं पिहु दीसेइ इत्थ संसारे। नियपुवकम्मजोगा दिद्वंतो एस इह बालो ।। ७७ ॥ एगमि गोयलंमी चंडपयंडा सहोयरा दुन्नि । निवसंति पिययमाओ चंडिपयंडीउ ताण कमा ॥ ७८ ॥ चंडस्स अस्थि पुत्तो सुपयंडो नाम अनसमयंमि । मरिऊण खीरिथालं उवविट्ठा चंडसुपयंडा ॥ ७९ ॥ता पत्तं मुणिजुयलं चंडो वियरेइ ताण तं खीरिं । एवं सुपयंडो वि हु पडिलाइ भावणासहिओ ॥ ८॥ नियनाहस्स सुयस्स य दाणं दह्रण निरुवमं जाति । चंडी वि हु पडिलाहइ खीरिं गुरुभत्तिसंजुत्ता ।। ८१ ॥ तं किं पि तेहिं पुनं समज्जियं तस्थ सुद्धभावेण । देवत्वरजरिद्धी न दुल्लहा ताण दुण्हं पि ॥८२॥ तं दद्ण पयंडो पयंडि मजा य भणइ अन्नुकं । अम्हाण किं हविस्सइ दिन्ना सवा वरा खीरी ॥८३॥ आउक्खयंमि मरिउं चंडो चंडी अ जति सुरलोए । कालीदेवीए पिउ सुपयंडो वंतरो जाओ ॥८४॥ भमिऊणं संसारे पयंडजीवो य कंथओ जाओ। न हु अस्थि दाणसत्ती पुत्वभवे वि हुन दिन ॥ ८५ ॥ चविऊण चंडजीवो धम्मरहो नाम नरवई तुमयं । चंडी वि हु धम्मवई संजाया कथयस्स पिया ॥८६॥ ममिऊण मवं जाया पयंडि जसवई य सेविपिया । कालीदइओ चविउं संजाओ अंबनामसुओ ॥ ८७ ॥ पुवसिणेहवसेणं अहिडिओ कालियाइ देवीए । तस्सत्तीए एसो अउव्वचरिउ व दीसेइ ।। ८८ ॥ नरवर! दाणपहावा जं न घडइ कहवि तं पि संघडइ । अवकुमारो रजं काउं गिहिस्सए दिक्खं ।। ८९ ॥

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