Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअ
कहासंग ।
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जाइ नियगेहे । जिणभवणवसहिवरपुत्थएस वियरेइ नियदवं ॥ ८२ ॥ साहम्मियवच्छलं संघस्स य पूर्याणं कुणइ निचं । दीणाणा जणाणं सुवणटंके पुणो देह ॥ ८३ ॥ कप्पडियतडियभिक्खायराण रयणाई देह अणवरयं । भट्टनगारियपाउललोयं सो कुइ अदरिदं ॥ ८४ ॥ रयणीए भंडारो दाणपहावेण वडए तस्स । दुइयदिणे तं वियरइ जहिच्छियं पइदिणं सेट्ठी ॥ ८५ ॥ दाणपहावा तेणं तंमि भवे महीयलंमि सयलंमि । निम्मलकित्ती पत्ता मणसंतोसेण संजुत्ता || ८६ ।। अह मुणिय अंतसमयं सत्तसु खित्तेसु वियरए दाणं । लच्छीपियाए सहिओ सविसेसं धम्मलीणाए || ८७ ॥ नियआउं पालेउं अंते सुविसुद्ध भावणपराई | मरिऊण देवलोए इंदसमाणा सुरा जाया ||८८|| इति दानविषये कृपणश्रेष्ठिकथानकं समाप्तम् ।
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शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवीकथा – दुस्सज्यं पि हु सिज्झइ सीलपहावेण ज्झत्ति लोयाण । जयलच्छीदेवीए दितं सुणह सुहजणयं ॥ १ ॥ भारहखित्ते खिते विजयउरं अस्थि लच्छिदुल्ललियं । नामेण विजयसेणो नरनाहो तत्थ बलकलिओ || २ || तस्संतेउरसारा विजया नामेण पिययमा अस्थि । अइपिम्मपासनद्वाई दो वि न सहंति विच्छोहं ॥ ३ ॥ अह मद्दव मासे एगेणं धीवरेण नइमज्झे । मच्छरगहणनिमित्तं वित्थारिय घल्लियं जालं ॥ ४ ॥ तत्थ जलपूरखिविया पडिया सहस चि पाउया एगा। मणिरयणकणयघडियं तं पिच्छिय धीवरो हिडो ॥ ५ ॥ चिंतइ रम्मत्तणओ एसा नरनाहपियमाजुग्गा । अह सो गच्छह सिग्धं पाउयहत्थो निवसयासे ।। ६ ।। तम्मि समयम्मि कत्थ वि नरनाहो जाइ रायवाडीए । उद्धकरपाउयं पिच्छिऊण तं पुच्छर सिग्धं ॥ ७ ॥ भो ! भो ! तुमए एसा लद्धा अदरम्मपाउया कत्थ ? । कहिऊण सो वि
शीलप्रभावे जयलक्ष्मीदेवी
कथानकम्
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