Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 36
________________ पाइअ दानविषये ॐ संगहे। सहिजए नूण ता वरा दिक्खा । परलोए वि हु लोओ जीह पहावा हवइ सुहिओ ॥ ५१ ॥ पिउपुत्ता अन्नोन रिउणो खलु हुंति जस्स कब्जेण । तं अत्थं चहऊणं घना मिहंति पहजं ॥ ५२ ।। अह माणधणो धम्मे दिनमणो नियगिहाउ नीहरिउं । कृपणएममि वरुजाणे संपचो पुनकलसो वि ॥ ५३ ॥ पिच्छेइ तत्थ साहुं पणमिय तस्लेव संनिहाणमि । संसारविरत्तमणो पञ्चजं बेष्ठिमिण्डए ज्झत्ति ॥ ५४ ॥ मुणिऊणं वुत्वंतं गच्छह अन्नत्थ तेण सह साहू । एवं मुणिउं लच्छी सई पि हु लोयवयणाओ कथानकम् । ॥ ५५ ॥ विमणमणा सा वि पुणो नियनाहं पद पयंपए एवं । पुनकलसेण दिक्खा गहिया किं कृणमि तुममिण्डिं ? ॥५६ । किंकायद्यविमूढा लच्छी चिंतेइ गाढदुहियमणा । मह अञ्ज पुत्तरयणं हत्थाओ निवडियं कह णु ।। ५७ ॥ निभग्गिया अहं खलु दबिरहे फुट्टए न ज हिययं । पुनस्स पुणो कलसो सो च्चिय जेणं मुणी जाओ ॥ ५८ ॥ सिट्ठी पहायसमए खत्तं दढुण मणइ नियदइयं । चोरेण गिममाणा कलहेण य रक्खिया लच्छी ॥५९ ॥ पढिऊण पुन्नकलसो थोत्रदिणेहिं पि बारसंगोइं । लच्छिविलासे नपरे पुणो वि सो एइ उजाणे ॥ ६० ॥ तं आगयं मुणेउं लोओ सबो वि जाइ उजाणे । लच्छीसहिओ किवणो जाइ अह वंदए पुत्वं ।। ६१॥ सो पुनकलससाई गहियवयं पिच्छिऊण लज्जाए । चिट्ठइ अहोभुह च्चिय तो तं पमणेइ मुणिनाहो ॥ ६२ ॥ इह संसारे एको सुदुजओ [ होइ] लोहगादरिऊ । तेण विजियाण कहमवि न हु सोक्खं होइ लोयाणं ॥६३।। दिट्ठतो इत्थ तुमं पुवमवे सुणसु तं समासेण । लच्छिविलासे नयरे एयंमि समिद्धिसंजुचो ॥६४॥ बाहडनामो सेट्टी तस्स पिया अस्थि रूविणी नाम । सेवंताणं ताणं विसयसुहं गाढनेहेण ॥ ६५ ॥ जाओ सि तुमं पुत्तो नाम धवलो ति तेहिं तुह दिनं । कालक्कमेण बाहडसिवी पंचत्तमावन्नो ॥ ६६ ॥ अह धवलो चिंतेइ जणएण समजिया इमा लच्छी । IP॥१३॥ RECORRECOR CSC565 CHAR

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