Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 34
________________ पाइअ संगहे। दानविषये कृपण श्रेष्ठीकथानकम्। ॥१२॥ गच्छए निए गेहे । अम्भुक्खणं (१) विणा वि हु सो निवडइ ज्झत्ति खट्टलए ॥ २०॥ तं पेच्छिऊण लच्छी पभणइ कि नाह ! दीससे दुहिओ। किं मुट्ठो केणावि हु? किंवा तुह पवहणं फुट्ट ॥२१॥ किं न निएसि निहाणं ? किं वा अवमनिओ य केणावि । किं वा चलाउ केण वि किं पि तुमं मग्गिओ आसि ॥ २२ ॥ एवं सो भणिओ वि हु किं पि न वियरेइ उत्तरं तीए । अह सा पुणो वि जंपइ नाह ! तुम भोयणं कुणसु ॥ २३॥ सो पभणइ कोवेणं झंखंती चिट्ठसे कहं नेव । जं अज्ज मज्झ जाय कि पि तुमं तं न हु मुणेसि ॥२४॥ लच्छी भणेइ किं किं तुह जायं ? मज्झ पिययम! कहेसु । सो मणइ पाउलेणं लोहडिओ अञ्ज मह गहिओ ॥ २५ ॥ सा वजरेह पिययम ! इह अत्थे किजए कहं दुक्खं १ । दाणेण इत्थ लोए पाविजइ नूण सुपसिद्धी ॥ २६ ॥ सो भणइ पसिद्धीए किं किजइ जा हवेह दाणेण | ता अञ्ज मज्झ दइए! नत्थि छुहा नेव मुंजिस्सं ॥ २७ ॥ दाऊण तओ सवहे कुणावए भोयणं पियं लच्छी। कहकहवि कवलपंचयमह मुंजइ किवणसिट्ठी वि ॥ २८ ॥ एवं बढ़ताणं ताणं जा जाइ कित्तिओ कालो । ता लच्छिसिट्टिणीए जाया गम्भस्स संभूई ॥ २९ ॥ सा पडिपुन्ने काले पुत्तं पसवेह पुनसंपुग्नं । लच्छी पमणइ पिय ! कुणसु पुत्तजम्मूसवं सम्मं ॥ ३० ॥ किविणो मासह पिययमि ! तुझ हविस्संति नूण बहुपुत्ता । तो मज्झ नत्थि अत्थो वयजोग्गो को वि गंठीए ॥ ३१ ॥ लच्छी मोणेण ठिया नवरद्धं ओसहं षयाइजुयं । जह नो पिच्छह सिट्ठी तं तह भक्खेह सा सिग्धं ॥३२॥ संखेवेणं दिनं नामं पुत्तस्स पुषकलसु ति । सो वि हु कमेण वह बालो जिणधम्मलीणमणो ॥ ३३ ॥ उवविसइ तओ हटे दवं च समुजए सया वि बहुं । नियभुयअजिअदवं दाणे भोगमि वियरेइ ॥ ३४ ॥ नियपुत्वं भक्खंतं तंबोलं पिच्छिऊण सहस ति। आरत्तवयणकमलो सिट्ठी पुणु SACROICERCOAR ॥१२॥

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