Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 33
________________ ॥ ३ ॥ छत्तीसं कोडीणं सामिचं वह तस्स सो सेट्ठी । सीलवरालंकरणा लच्छी नामेण तस्स पिया ॥ ४ ॥ एवंविहे वि विहवे लच्छीनिलयस्स होइ न हु तित्ती । परिममह रयणिदिवसं अत्थो अत्थो त्ति कुणमाणो ||५|| न हु कस्स वि सो वियरह दाणेण कवडियं पि कइया वि । कुट्ठी वि तस्स हट्टे कुट्टियहिययं मुहं जाइ || ६ || सो रसवईए भुंजई तिल्लं बल्ला य सह कुटुंबेण । न गिहे वि तस्स दीसह नवरत्तं चीवरं कवि ॥ ७ ॥ दाणभरण न गच्छइ देवकुले कहवि मुणिपासे । लच्छीनिलओ सेट्ठी न मिलेइ पंचजणमज्झे || ८ || दीवुच्छवे वि न हु तस्स दीसए कहवि मोययाईयं । कप्पडियतडियभिक्खायरा वि विलासया जंति ||९|| लोओ जहत्थनामं लच्छीनिलयस्स देह किविणो त्ति । तं सङ्घत्थ पसिद्धिं संजायं कित्रणचरियस्स ॥ १० ॥ अन्नदिणे सो किवणो अगाढं धरिय बाहुमूलंमि । मित्तेण कहवि नीओ देवउले उस्सवे कम्मि || ११ || उबविट्ठो पिच्छणए दिअंतं पिच्छिऊ तर्हि दाणं । हिययंमि तस्त्र चडिया गंठी अह निवड महीए ॥ १२ ॥ तो को वि कुणइ वायं को वि हु मद्देइ तस्स पुण उयरं । अह लद्धचेयणो सो गेहूं पइ चल्लिओ जाय ||१३|| तो पाउलेण भणियं बलाउ उबवेसिओ पुणो सेट्ठी । वरनट्टगेयरंजियलोओ दाणं तहिं देह || १४ | कित्रणो एगं पुप्फं कहकहवि हु देइ लोयलज्जाए । अह वित्ते पिच्छणए जा किवणो पह हिं चलिओ || १५ || पाउलएणं भणिओ पुप्फट्ठाणंमि देसु किंपि तुमं । किवणो भणेह अन्नं मह पासे नत्थि पुण किंपि ॥ १६ ॥ पभणेइ य पाउलयं जड़ किं पि हु अम्ह देसि न हु इत्थ । ता नियगेहे गंतुं नेव तुमं लहसि कहवि पुणो ।। १७ ॥ पाउलएणं गहिओ किरणो पभणेह लोयपञ्चक्खं । सच्चं चिय संजायं धम्मस्स वि धरणयं एवं || १८ || अइसंकडंमि पडिओ feat अकंपमाणहत्थेण । अप्पे तत्थ ताणं एगं चिय दद्धलोहडियं ॥। १९ ।। अह कसिणमुहो किवणो सुन्नमणो

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