Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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हवह कोवेण ||३५|| अह अमदिणे किवणो रयणीअर्द्धमि पिच्छए सुमिणं । पुनकलसेण ब्राहि लोहडिओ मक्खिओ अज || ३६ ॥ इपिच्छिऊण सुमिणं उदुइ किविणो समाउलीहूओ । पभणइ सुत्ता ? अहवा किं जग्गसि १ पिययमे ! तुमयं ॥ ३७ ॥ कहकहवि हुजा जग्गह ता किवणो पभणइ सुणसु मह वयणं । तुह पुत्तेणं बाहिं लोहडिओ भक्खिओ अज्ज ॥ ३८ ॥ सा पभणड़ किं खसि १ किं कहिओ केण किं सयं दिट्ठो १ । सो मणइ मए सेट्टिणि ! सुमिणे दिट्ठो इमो अत्थो ॥ ३९ ॥ लच्छी पभणइ पिययम ! सच्चविओ सो आहाणओ तुमए । जं सुमिणगपट्ठीए मूढ ! तुमं रउडयं देसि ॥ ४० ॥ किवणो जंवर सेट्ठिणि ! जयति तुमं कुणसु दीवयं इत्थ । सा वि छु मोणं कुणिउं सुत्ता नो उत्तरं देह ॥ ४१ ॥ किरणो वि हु कुणिंऊणं सयमवि दीवं बोहर पुत्तं । वियरेसु हट्टलेक्खं रे। रे! मह अञ्ज सिग्धं पि ॥ ४२ ॥ अह कड्डिय संपुडयं पुत्तो वि हु हडलेक्खयं देइ । अनुलोमविलोमाओ न पुजए कहवि लोहडिओ ॥ ४३ ॥ तो पभणह किवणो वि हु रे! रे ! पाविट्ठ! मज्झ सबघणं । थोत्रेणं थोवेणं तर अहं मक्खियं मन्ने ॥ ४४ ॥ पुत्तो वि हु मणइ मए कम्मि दिणे ताय ! मक्खियं दवं । उच्चसरेणं कलहंति जाव ता तस्थ किं जायं १ ।। ४५ ।। समयंमि तंमि तस्स उ मितिं स्वणिऊण जाव पविसे । एगो चोरो ता तत्थ निसुणए ताइं वयणाई ॥ ४६ ॥ चितह जह गिण्डिस्सं दवं किवणस्स जीवियं गहियं । ता खलु एस मरिस्सर पावेउं हिययसंघ ॥४७॥ गिव्हिरसह गोहचं को स्खलु एयस्स चितिउं चोरो । गच्छ सिग्धं पि तओ कत्थ वि अन्नत्थ ठाणंमि ॥ ४८ ॥ किणो वहुविवयंतो रयणिं सयलं पि चिट्ठए तत्थ । रे पुत ! तुज्झ ठाणं मह गेहे नत्थि पमणेइ ॥ ४९ ॥ चिंते पुनकलस कायम किं व दद्वेण १ । जं न सगं नेव परो भुंजिस्सह कवि कहयात्रि ॥ ५० ॥ जइ इत्थेव बुभुक्खा

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