Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 40
________________ पाइअ कहा संगहे । ॥ १५ ॥ तत्थ कथं कामोत्रम कुमरसंजुत्तं ॥ २४ ॥ ताई वि तं पिच्छेउं अन्युड्डाणं कुणंति सहमति । उववेप्सिय पुच्छंती किमत्थमिह तुझ आगमणं १ ।। २५ ।। दाऊणं समओचियमुत्तरमह सा वि खित्रइ जा दिहिं । ता नियइ एगकोणे एगं चिय पाउयं रम्मं ॥ २६ ॥ तं पिच्छिऊण चिंतह एसा दीसे तस्स सारिच्छा । एयाए एस चिय हविस्तई सामिणी मने || २७ ॥ ता अज मज्झ चिंतियमणोरहा सहलभावभावना । एसा कह नेयधा सपाउया तम्मि नियनयरे ।। २८ ।। अह तेहिं सा भणिया अम्मी ! अम्हाण हो पाहुणिया । आमं ति भणिय भुंजिय चिट्ठह सा तं दिणं तत्थ ।। २९ ।। अह एगंते जाए मयरा पुच्छेद सुद्भवणेण । वच्छि ! कई उसियं नयरं १ को एस १ का य तुमं १ ॥३०॥ सा वीसत्था पभणेड़ सुण अंब ! समत्थि जयउरं नयरं । तत्थ निवो जयसूरो पाणपिया जयसिरी तस्स ॥ ३१ ॥ जयलच्छी नामेण तणया ताणं समुप्पन्ना। सिक्खि अकला कलावा कमेण अह जुवणं पत्ता ||३२|| अम्हाण आसि रजे दिनं कुलदेवयाइ कमपत्तं । बहुसो दिवपहावं अहरम्मं पाउआजुयलं ||३३|| देवो व वंतरो वा रोगार्थको व अहत्र दुम्भिक्खं । परचकं च सचकं तस्स पहावा न पूरेह ॥ ३४ ॥ ताणं मज्झा एगा पुच्छे कवि कत्थ गया । खेयपरो मह जणओ तत्तो पालेइ रजमरं ।। ३५ ।। अह कित्तियंमि समए गयंमि पासाय सिहरपचाए । मह रूवं दट्टणं अइलुद्धो वंतरी एगो || ३६ || मह जणयं जयसूरं अह सो पभणेइ नियधुया तुमए । दायवा कस्सावि हु ता मह देवस्स वियरेसु ||३७|| अह भगइ मज्झ जणओ वंतरमणुयाण मिलइ न कया वि । इय पडिसिद्धो सो बिहु गाढं कोवेण संजुत्तो ॥ ३८ ॥ निहणे मज्झ जणयं जणणि अह सवनयरलोयं पि । मं इक्कं मुत्तूर्ण सो दुट्ठो वंतरी रुट्ठो ।। ३९ ।। अअ अहं नियदइयं कुणिस्समिय भणिय सो गओ व्हाउं । ता सहस चिय एसो कुमरो कत्तो वि संपत्तो ॥ ४० ॥ शीलप्रभावे जयलक्ष्मी देवी कथानकम् । ।। १५ ।।

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