Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअ
कहा
संग हे ।
॥ १६ ॥
॥
पच्चुवयारं काउं न समत्यो कुमर ! तुज्झ अहं सुरा विजिष्यंति निश्चपि ॥ ५८ ॥ अग्भिड जाव छम्मासे ।। ५९ ।। असिईसयदीहाणं मज्झे
५७ ॥ तहवि हु एयं खग्गं दिपहावं कुमार ! गिण्हेसु । एयस्स पहावेणं कहवि महिला जड़ पुण एयस्स खग्गरयणस्स । तो तस्सामी होही अचेयणो जड़ को विनिययसत्तीए जीवावड़ ता जीवड़ अह नो सो मरड़ पुण पच्छा ॥ ६० ॥ ता महिलाए फंसो रक्खेयवो कुमार ! जत्तेण । इय कहिय तेण खग्गं समप्पियं गिव्हिअं च मए ॥ ६१ ॥ अह कहवि रमणिकरकमलच्छित्तखग्गाउ वेअणा तुज्झ । गच्छ ता तुह मित्तो आणि (हरि) स्सह एम मंतिसुओ ।। ६२ ।। रक्खडिया मह एगा समपिया तेण कहिय माहप्पं । तिसछुहसीउण्डदुहं पासठिया हरई खलु एसा ॥ ६३ ॥ एगो मंतो तेणं दिन्नो कहिऊण मंतिपुत्तस्स । एयपहावा जीवह चेयणरहिओ वि जीवजुओ ॥ ६४ ॥ जत्थ लिहिज्जइ एसो नहेण तं जाइ चिंतियं ठाणं । इय भणिय मंतमेगं समप्पर सुत्तहारस्स ।। ६५ ।। कुणिऊणं पिए ! एवं जोगिंदो अम्ह गरुयमुवयारं । अन्नत्थ नहेण गओ तत्तो अम्हे वि संचलिया ।। ६६ ।। मग्गे गच्छंताणं कहकहमवि दिवपरिणइवसेणं । मुल्ला परुप्परेणं ते कत्थ गया न जाणेमि ॥ ६७ ॥ मग्गंमि ताण सुद्धिं मग्गंतो हं इह समायाओ । मित्तविओओ एवं दुक्खनियाणं पिए ! मज्झ ॥ ६८ ॥ एयं अणेण गुज्झं कहिअं अम्मो ! मए वि इह तुज्झ । इय सुणिय विहियमणा मयरा एवं विचिते ॥ ६९ ॥ कुमरंमि विजमाणे नो मह भणियं कुणिस्सई एसा । ता खग्गष्फंसेणं अचेयणं कुणिय इह एयं ॥७०॥ दावेऊणं किं पि हु लोहं एवं अहं तर्हि नेमि । इय चिंतिऊण सिग्धं जा पत्रिसह ज्झति अवयरए ॥ ७१ ॥ अइरम्मं अइरम्मं वग्गं कस्सेरिसं ति पुण भणिरी । फंसह दुट्टा मयरा वारंतस्सावि कुमरस्त ॥ ७२ ॥ अह कुमरो नियदेहे दाहं अइदुस्सहं मुणेऊणं । जयलच्छी ( जयलच्छि )
शीलप्रभावे
जयलक्ष्मी
देवी
कथानकम् ।
॥ १६ ॥

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