Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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एगते हक्कारिय भणइ ससिणेहं ॥ ७३ ॥ जो साहिओ मए तुह एगते खग्गरयणयुक्ततो । मूढमणाए तुमए सो कहिओ दुट्ठमयराए ॥ ७४ ॥ जो पुरिसो महिलाणं हिययामिप्पायमप्पए कहवि । सो नूणं मृदमई अप्पाणं खिवइ दुइजलणे ॥ ७ ॥ मयराए मह खग्गं फरिसियमेयं अणाए दृट्टाए । इय मुणिऊण दइए ! तुमए वि न वीससिया ॥ ७६ ॥ ता हं चेयणरहिओ हविस्समग्गी पुणो न दायको। जइ पुण कहमवि एवं मुणिम इह एइ मंतिसुओ ॥ ७७ ॥ ता मह जी दइए! छम्मासं जाव तो परं मरण । इय कहइ जाव तीए ता नट्ठा चेयणा तस्स ॥७८|| अह पमणइ जयलच्छी अंच! मओ मज्झ पिययमो कहवि । अइदुक्खदुक्खिया वि व तं मुणिउं भमइ(भणइ) मयरा वि ॥७९॥ सच्चं चिय जइवच्छे! तुझ पिओ एस मरण मावनो। मा तहवि कुणसु दुक्खं दाही अन्नस्स नियति ॥ ८॥ विजयपुरे नरनाहो नामेणं अस्थि विजयसेणु ति । सुहयसिरोमणिमझे रेहा तस्स चिय जयम्मि ।। ८१॥ तं पाणपियं काउं भुजसु मोए जहिच्छिए निच्चं । तं नयरं पइ संपइ ता चलसु मए समं वच्छि! ॥ ८२ ॥ इय सुणिऊणं चिंतइ किं किं एसा कुणेइ पाविट्ठा । सब पिच्छेमि ददं तत्तो सा जंपए मयरं ॥ ८३ ॥ अंब! तए अहरम्मं भणियं ता चलम मं गहेऊणं । पाउअजुत्ताउ तओ विजयपुरे दो वि पत्ताओ ॥ ८४ ॥ एगम्मि पुरुजाणे जयलच्छिं ठाविऊण सा भणइ । नरनाहं तुह समुहं बच्छे! सिग्धं समाणेमि ॥ ८५॥ विहसियवयणा मयरा रायउले जाइ नमइ नरनाहं । पुट्ठा तेणं साहइ चरियं सवं पि वित्थरओ ॥ ८६ ॥ मयरा पाउयमप्पिअ पमणइ एयाइ सामिणी वि मए। आणीया उजाणे चिट्ठह संपइ चलसु समुहं ।। ८७ ॥ तं पाउयं समप्पा तुट्ठो देवीए ज्झत्ति नरनाहो । कइवयजणसंजुत्तो
१ अहं BI
RECARRAGRAAGRAT

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