Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 30
________________ पाइअ संगहे। दानविषये चंडगोवालकथानकम्। जसो न सामन्त्रो। कथयस्तो गरे । रे! आणह सिग्यासहरो तं पिच्छिा विमि LOCTOCRACCASIOGRACROSHASHA दइए ! एवं सोक्खं जायं तणएण जाएण ॥ ५७ ॥ पालणयंमि पसुत्तो अंजकुमारो वि भणइ हसिऊण । मज्झ पहावा सोक्खं | तुम्हाण हविस्सई नूणं ॥ ५८॥ तस्स पहावा जाओ गेहस्स चउद्दिसि पि पायारो।गयणग्गलग्गसिहरो तं पिच्छिअ विम्हिओ सेट्ठी ॥ ५९॥ ते पिच्छिऊण निवई रोसारुणलोयणो पयंपेइ । रे! रे! आणह सिग्धं पुत्तजुयं कथयं सेट्ठि ॥ ६॥ अह भणइ बुद्धिसागरमंती नरनाह ! सो न सामन्नो । कथयपुत्तो चालेण जेण तुह आहया पुरिसा ॥ ६१॥ एसो उत्तमपुरिसो लिजइ मत्तीए न उण कोवेण । जुत्तिजुअं तवयणं मुणिउं मंतिं भणइ निवई ।। ६२ ॥ सो केरिसो सुओ जो दीसह जस्सेरिसो गुरुपहावो । मंतिवर ! गच्छ सिग्धं आणसु तं कहवि इत्थ तुमं ।। ६३ ॥ अह भणइ अंचकुमरो जणयं इह ताय ! एइ मंतिवरो । सेट्ठी वि हु भयभीओ पोलिदुवाराई ढंकेइ ॥ ६४ ॥ तो पुण वि वयइ पुत्तो भत्तिजुओ एइ न उण कोवपरो । ऊससिऊणं सेट्ठी उग्घाडइ ज्झत्ति दाराई ॥६५॥ संपत्तो सो सचिवो उवविसई नेव आसणे मुके । इय मणइ तुज्झ गेहे उबद्दवं किं पि न कुणेमि ॥ ६६ ॥ तुह पुत्तदंसणूसुयमहिवइणा सिट्टि ! पेसिओ अहयं । आहवणत्थं तं गिहिऊण तणयं तुम चलसु ॥ ६७ ।। तं सुणिय मंतिवयणं भयविहुरो जाव चिट्ठए सेट्ठी । ता भणइ अंबकुमरो मंति ! अहं आगमिस्सामि ॥६८॥ मंती पालणयठियं भासंतं पिच्छिऊण तं कुमरं । विम्हियहियओ गच्छइ ससिद्वितणओ निवसयासे ॥ ६९ ॥ निवलक्षणोद्र ववेयं अउवचरियं सुए असंजुत्तं । तं पेच्छिऊण बालं नरनाहो विम्हिओ बाढं ॥ ७० ॥ गहिऊणं उच्छंगे नरनाहो वजरेद तं कुमरं । सो तं जंपइ वयणं जं पइ कोऊहलं जणइ ॥ ७१॥ अंबकुमार ! इयाणि नियवुत्तंतं कहेसु भणइ निवो। सो पडिभणेइ संपइ गच्छ तुम सिग्घमुजाणं ।। ७२ ॥ केवलनाणी तत्थ य समोसढो सो वि सयमेव । मह तुह वि RECASSAGAR

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