Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 27
________________ वि अणि तं दिट्ठे किं पि कहवि मह पासे १ । कुल महिलाणं खलु जीवियं पि नियुनाइसाहीणं ॥ १० ॥ दुहकारणंमि कहिए होही तुझ वि मणस्स संतावो । इय नो कहियं अइ आगहो ( अग्गहो ) त्ति ता संपयं सुणसु ॥ ११ ॥ तं किं पिनत्थि जं नहु तुम्ह पसाएण सिज्झई मज्झ । एयं चिय मह दुक्खं पुत्तमुहं जं न पिच्छामि ॥ १२ ॥ तत्तो पभणइ सेट्ठी किं किजइ ? पिययमे ! विसमवडिए । अत्थे इमंमि नूणं पुढञ्जियकम्मसाहीणे || १३ || नो विश्वेणं न परकमेणं बुद्धीए नेव न गुणेहिं । सो अत्थो सिज्झइ पुरिसाणं पुनसादीणो || १४ || तहवि मए जयवं पुत्तस्थे कुणसु भोयणं दइए । जेण कुणेमि अहं पि हु तो दुनि विज्झत्ति झुंजंति ।। १५ ।। अह सा भणेह दहयं मह कहवि होइ ताव न हु तणओ । पुत्तत्थे नाह ! तुमं अनं परिणे वरकनं ।। १६ ।। सेट्ठी पभणइ दहए ! दहूणं मज्झ पिययमं दुहयं । तुज्झ हविस्सइ ईसा दुक्खं गरुयं पुणो पच्छा ॥ १७ ॥ मा पिययम ! भण एवं तुह सवहो जइ धरेमि किं पि दुहं । तीए भणिओ परिणइ सिट्ठिधूयं जसवहमिहाणं ॥ १८॥ ती विन हव पुत्तो अनमुवायं तओ अलहमाणो । नयरस्त दूरभाए काली देवी समत्थि तहिं ॥ १९ ॥ सावि हु नयरजणाणं मणिच्छिए पञ्चए य पूरेह । कंथयसेट्ठी गंतूण तत्थ तं पूयए ज्झत्ति ॥ २० ॥ सो तत्थ ठिओ चिट्ठह नियमं काउं मणमि जइ एसा । वियरिस्सइ मह पुत्तं ता गच्छिस्सं नियं गेहूं ॥ २१ ॥ तं निच्छयं मुणेउं सा वि हु पयडीवित्तु पभणे । तुट्टा हं वरसु वरं सो जंपर देसु मह पुतं ॥ २२ ॥ महं अत्थि पुरोहडए चूयतरू तस्स फलदुगं गहिउं । अप्पे जसवईए भविस्सई तीए पुत्तदुगं || २३ || पढमं पुत्तं अप्पसु धम्मवईए परं जसवईए । इय कहिऊणं देवी तक्खणम पत्ता ॥ २४ ॥ बहुपुत्तलोहजुत्तो सिट्टी गिव्हित्तु सत्तअंबाई । पमुद्दयचित्तो सगिहं पत्तो सवं कहर वृत्तं ।। २५ ।।

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