Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 26
________________ पाइअकहासंगहे । ॥ ८ ॥ ॥ ७६ ॥ तत्थ ठिण वि तुमए चिंतियमेयं परस्स वत्थुमिणं । अवहरमाणस्स महं होही सम्मत्तपरिहाणी ॥ ७७ ॥ ता ममा मह नियनियमभंगक्खमेण हारेण । तं मुत्तुं तत्थ च्चिय अन्नत्थ तुमं तओ पत्तो ||७८ || सुहभावो कालेणं मरिउं जाओ तुम घणसेट्ठी । सम्मत्तपहावाओ पढमं जाया तुह समिद्धी ।। ७९ ।। परहारगहण अजियदुकम्मेणं समागयं तुज्झ । दारिद्द जा को तं ते पुणो वि तुह रिद्धी ॥ ८० ॥ इय पुत्रभवं सुणिउं सेट्ठी संजायजाइसरणो सो । गहियवओ संपत्तो देवतं पुन्नभावेणं ॥ ८१ ॥ इति सम्यक्त्तवप्रभावे घनश्रेष्ठिकथानकं समाप्तम् । दानविषये चंडगोवालकथानकम् - तं नत्थि किं पि लोए जं सिज्झइ नेव दाणमहिमाए । जह चंडगोवालेणं पत्ताओ देवरिद्धीओ || १|| अस्थि विसालं नयरं रिद्धीए गयणवल्लहभिहाणं । तं पालइ नरनाहो धम्मरहो नाम धम्मपरो ॥२॥ नयरपहाणो सिट्टी नामेणं कंथओ वसइ तत्थ । घम्मवई पाणपिया संजाया तस्स मणड्डा || ३|| जहवि नियदव संख कंथ सेट्ठी न याण तहावि । ओवजणं कुणतो स्यणिदिणं पि हु भ्रमइ निचं ॥ ४ ॥ अह ताण जाइ कालो सेबंताणं सया वि विसयहं । पुजियपुन्नपहावमिलियश्चिताणं (चित्ताणं) दुण्डं पि ॥ ५ ॥ अन्नदियहमि चिंतापरवसा कुणइ भोयणं नेव । अइदुक्खक्खयमणा चिट्ठ मोणेण धम्मवई || ६ || जाणियवृत्तंतेणं मणिया सा सेट्टिणा सदुक्खेण । दइए ! न हु मोणेणं पओयणं सिज्झए किंपि ९ ॥ ७ ॥ जं किंपि तुज्झ दुक्खं अइदुसहं अस्थि हिययमज्झमि । तं जइ मह कहणिअं हवेह ता कहसु सहसचि ||८|| अह हसिउं सा जंपर पिय ! किं तुह अत्थि एरिसं पिम्मं । जं मह समुहं पभणसि एयं वयणं तुमं अज ॥ ९ ॥ जं तुह १ ता अलमिमिणा नियनियमभंगकरणक्खमेव हारेण B २ पुन्नभावाण A दानविषये चंड गोवालकथानकम् । ॥ ८ ॥

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