Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअ
IA
सम्यक्त्व
विषये
कहासंगहे।
धनभेष्ठिकथानकम् ।
SSCRISIOCAL-15
भणिओ ॥४५॥ जपेइ धणो सेट्टी निययगुरुं पुच्छिउं विमग्गेमि । हरिसपरेण तेणाणुमनिओ जाइ वसहीए ।। ४६ ॥
पणमइ गुरूण चलणे नाणेणं मुणिय रयणिवुत्वंतं । पभणंति ते वि मग्गसु एवं चिय सिद्धि ! सुरपासे ॥ ४७॥ जा कल्ले 9 भावणं कया मए जिणवरस्स वरपूया। तीह चिय पञ्चक्खं मज्झ फलं देसु दाणिं पि ॥ ४८ ॥ सो विहु वंतरपासे तं चिय 'मग्गेइ तत्थ गंतूण । पमणेइ सुरो सम्म तीए फलं देवरिद्धीओ ।। ४९ ॥ अणहुंताओ ताओ तुम्हं दाउं न अस्थि मह सत्ती ।
देवा वि हु लोयाणं देंति फलं अप्पसाहीणं ॥ ५० ॥ जं पुण मह साहीणं अत्थि निहाणं इममि कोणमि । चउलक्खदम्ममाणं | तं गिण्हसु गेहमेयं च ।। ५१ ॥ इय मणिऊणं देवो पचो अइंसणं तओ सेट्ठी । जा पेच्छइ तं ठाणं पयडीहूयं ता निहाण |॥ ५२ ।। तो चिंतह धणसेट्ठी निच्चलभावाउ मज्झ धम्ममि । जाया पुणो वि रिद्धी अहो ! अहो ! जिणमयपहावो ॥५३॥ तं गिहिऊण किं पि हु दविणं संबलनिमित्तमइनिहुओ । दाउं गिहस्स दारं विणिग्गओ हरिससंजुत्तो ।। ५४ ॥ गंतूण चेइयहरे जिणस्स पूर्व विसेसओ काउं । आगम्म गुरुसयासं हरिसियचित्तो नमित्र तत्तो ॥५५ ।। कस्स वि गेहे भोयणसामग्गि ज्झत्ति कारवेऊणं । पडिलाभिय मुणिजुयलं कुणइ तओ पारणं सेट्ठी ।। ५६ ।। अह धणसेट्ठी जिणगुरुचलणे नमिऊण जाइ नियगामे । धम्ममि दिन्नचित्तो विसइ तओ अप्पणो गेहं ॥ ५७ ॥ कोह न पुच्छा वत्तं गिहमि पत्तस्स तस्स सेविस्स । पत्तेयं रयणीए नियं कुडुंब भणइ तचो ॥ ५८ ॥ धणउरनयरंमि मए लई रम्मं निहाणमइविउलं । ता गंतवमवस्सं तत्थ तओ तेहिं सो भणिओ ।। ५९ ॥ तुह गहिल जायं दविणं दविणं ति झंखमाणस्स । अम्हाणं नामं पि हु तत्थ पुरे जाइन कया वि ॥ ६० ॥ लहुपुत्तो नेहपरो पमणइ भत्तीए धणगिरी एवं । आगच्छिस्सामि अहं तए समं ताय !
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