Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 22
________________ पाइअ कहा संग हे । 11 & 11 सो भवसवो न दीणभावं पयासए कहवि । भज्जा तणया य पुणो भणति तं गाढदुहियमणा ॥ १६ ॥ बहुधम्मवयवसओ दारिद्द सेट्ठि ! तुम्ह संजायं । इय भणियस्स वि से लहसइ नेव धम्मंमि बहुमाणो ॥ १७ ॥ धम्मत्थवयवसओ दइए ! जायं न अम्ह दारिदं । पुढकियकम्माणं मुणह विवागं इमं तुन्भे ॥ १८ ॥ जं पिय तं पिय काउं वाणिज्जं नो तरंति ते तत्थ । नंदिग्गामे ताइं गयाई चइऊण नियनयरं ॥ १९ ॥ सबाई ताई महया दुक्खेणं निग्गमंति दियहाई । पुट्टलयं काऊणं संझाए मिलति भुजस्स ॥ २० ॥ एक सेट्ठि मोक्तुं सिढिलियधम्माई ताई जायाई । धम्माउ वि दारिद्द नो गच्छ इय विचिंतेउं ॥ २१ ॥ सेट्ठी निचलचित्तो धम्मे भावं चएइ नो कहवि । सम्मत्तसुद्ध हियओ गमेइ सो कइवयदिणाई ॥ २२ ॥ अन्नदियइंमि सेट्ठी सकुटुंबं भणड़ महुरवयणेहिं । एगं वेलं जइ नियविम्बं पिच्छामि ता धन्नो ॥ २३ ॥ तो सवाई विताई अक्कोसं देति गाढदुखाई । जंपंति य देवगिहाइधम्मिओ तुह गया लच्छी ॥ २४ ॥ तो एयाई गरुयं कम्मं बंधंति इय अपुच्छितु । धणउरनयरे गच्छइ एगागी तह जिणाययणे ।। २५ ।। संबलनिमित्त मेगो चिट्ठह गंठिम्मि रूपओ मज्झ । एएण अहं गिरहामि रम्मकुसुमाई पूयकए || २६ ।। उववासो मज्झ हविज अज चउमासयं जओ पवं । कल्ले पुण पारणयं जहत वसई नूणं ॥ २७ ॥ इय चिंतिऊण कुसुमाई गिन्दिउं धूलिमलिणदेहो वि । सुहभावनिम्मलमणो मत्तीए कुणइ जिणपूयं ॥ २८ ॥ सुद्धेणं भावेणं तेणं दुत्थेण तंमि समयंमि । जं अञ्जियं सुपुण्णं तं मुणइ विसिट्ठनाणजुओ ॥ २९ ॥ तो चंदिऊण देवे वसहिं गंतूण नमः गुरुचलणे । निसुणइ धम्मं संझाइ तेहि अह पमणिओ सेट्ठी ॥ ३० ॥ वसहीए १ दुक्खेण गर्मिति तत्थ दियद्दाई A २ पोट्टलयं कुणिऊणं A ३ भोजस्स A। श्री सम्यक्त्वप्रभावे घनश्रेष्ठिकथानकम् । ॥ ६ ॥

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