Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 20
________________ बाइअकहासंगहे। ॐॐACCRACANCE मंती इत्थ कओ तेण वामणओ ॥ १२९ । डसिऊण तंमि ठाणे पुवनिहित्तं विसं मए हरियं । पुत्वभवसिणेहेणं एवं सत्वं पिदादानविषये परिविहि॥१३०|| सुणिऊणं नियरियं सिंहलसीहस्स तत्थ संजायं । जाइस्सरणं तो ज्झत्ति पेच्छए पुवभवमेसो ।। १३१ ।। धनदेवइय कहिउं वुत्तं देवो असणं गओ तत्तो। महिनाहेणं पुट्ठो नियचरियं कहइ कुमरो वि ।। १३२ ॥ कुमरेणं पुट्ठाओ गाढं धनदत्तदुक्खेण जुत्तहिययाओ । भजाओ वित्थरओ साहिति नियं नियं चरियं ।। १३३ ।। कुमरं रयणवई पि हु नियअवराहं खमावए कथानकम्। रुद्दो । ताई वि अभयं वियरंति मंतिणो दीणवयणस्स ॥१३४॥ अह कुसुमसरो राया सिंहलदीबमि पेसए कमरं । मजाच उक्कजुत्तं पुनसहाय विभूईए ॥१३५ ॥ खुडियं खट्टं आरुहिय वेगओ नहपहेण संपत्तो। जणणिजणयाण चलणे सिंहलसीहो नमइ तत्तो॥ १३६ ॥ धणवइरयणवई वि य रूवबई तह य कुसुमवइभजा । चउरो वि हु बहुयाओ नमंति ससुराण पयकमले ॥१३७॥ जणणी भणइ सदुक्खं तुह विरहे वच्छ ! जं न मह हिययं । फुटुं तड त्ति ता खलु विहिणा वजेण संघडियं ॥१३८॥ सो लजाए अहोमुहमवलोयइ गाढमाणसंजुत्तो। जणओ नियउच्छंगे सीहलसीहं तओ कुणइ ।। १३९॥ कंथापहावजुत्तो अदरिदं कुणह सयलमहिवलयं । सवाई ताई कालं गति अइसोक्खभावेणं ॥१४०।। अइदुग्घडचरियाई सविसेसं मुणिय भवसरूवाई। नियआउं पालेउं पंच वि पत्ताई देवत्तं ॥ १४१॥ इति दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकं समाप्तम् । - -

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