Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ पाइअकहासंगहे। SARAKASH पत्तो। तो डसिओ सप्पेणं इय कहिउँ उट्ठए खुजो ॥९८॥ कल्ले कहिस्समन्नं नियपियचरियं मुणित्तु रूववई । किं संजायं तस्स ? | दानविषये त्ति सायरं पुच्छए खुजं ॥९९|| तिन्नि वि वयणपराओ तिन्नि वि तस्संमुहं निअंतीओ। खुजयपुदि तिन्नि वि ताओ न चयंति धनदेवजुबईओ ॥१००॥ अवगन्निऊण ताओ निवई मग्गेइ कुसुमवइकन्नं । मुणिऊण निअपइण्णं वीवाहं कुणइ सो सिग्धं ॥ १.१॥ धनदत्तकस्स वि नेव पमोओ नरवइलोअस्स तंमि वीवाहे । वामणउ त्ति भणित्ता को विहु नो मंगले देइ ॥१०२॥ तिन्नि वि जुबईओ कथानकम्। तओ नियपिययमसुद्धिमत्थमाणाओ । मंगलधवले खुजस्स दिति ताउ चिय विवाहे ॥ १०३॥ छंदं कुणमाणीओ तिनि वि चिट्ठति खुजपासंमि । गद्दहपाया वि जओ नियकज्जेणं मलिजंति ॥१०४॥ अह मग्गइ वीवाहे वामणओ हत्थमोयणं किं पि । हसिऊण भणइ सालो सप्पं गिण्हेसु फुप्फत ।। १०५ ॥ जंपेइ तओ खुजो सप्पो चित्र होउ मज्झ पच्चक्खो । आगंतूणं सप्पो कओ वि सिग्धं डसइ हत्थे ॥ १०६ ॥ तो मुच्छं संपत्तो कुमरो पीडाइ पडइ महिवीढे । तिनि वि चिंतंति तओ जइ खुजो मरइ इह समए । १०७॥ कत्तो पिययमसुद्धी हवेह ता मरणमुचिअमम्हाणं । कुसुमबई वि हु चिंतह पइमरणे नूण मह मरणं ॥ १०८ ॥ उक्तं च-अन्नं सर्व पि दुहं कहमवि लोयाण नूण वीसरइ । बल्लहविओयदुक्खं जावजीवं पि सल्लेह ॥ १०९॥ वल्लहविरहसरिच्छं अवरं दुक्खं न दीसए कि पि। जेणं सल्लंतेणं मरणं पि हु वंछए लोओ ॥ ११०॥ निकारणजणदुञ्जण ! रे दिव! तहावि किं पि पमणेमो। वरि मरणं पि करेजा मा विरहो वल्लहजणस्स ।। १११ ।। मरणमणाओ चउरो वि ताउ उयरंमि दिति जा छुरियं । ता सयलो वि हु लोओ अकंदह मुक्कचाहभरो ॥ ११२ ॥ मा मा कुणेह तुज्झे अइगरुयं साहसं १ मुणित्तु । २ मंगलं देइ । ३ खुजस्स तं दिति ताओ चिय AI IR॥४॥ COMHOCALCASES

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98