Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 19
________________ इमं सहसा । किं अप्पघायणेणं हवेह मणवंछिया सिद्धी ? ॥११३ ॥ इय जा पभणइ लोओ मुच्छाविगमंमि सो पुणो सुनो। वरकंतिजुओ कामु व उट्ठए ता सहावत्थो ॥ ११४ ॥ विम्हइओ सयलजणो अपुवं पिच्छिऊण अच्छरियं । चउरो वि ताउ हियए नचंति अउव्वभावेणं ॥ ११५ ॥ सो पुवकहिअनागो देवो होऊण पभणए कुमरं । बंधवनेहेण अहं कहेमि तुह पुत्वभवचरियं ॥ ११६ ॥ धणउरनयरे सेट्ठी धणंजओ तस्स धणबई भजा । धणदेवो धणदत्तो जुगलेणं ताण दो पुत्ता ।। ११७ ॥ ते दुन्नि वि सुविणीया परोप्परं गाढनेहसंबद्धा । धम्मपरा दाणपरा सच्चपरा सीलसंजुत्ता ॥ ११८ ॥ अह गिम्हे कच्चोलं महुरजलसकरापयसणाहं । धणदेवो पाणत्थं जा गिण्हइ नियइ ताव मुणी ॥११९ ॥ कह दुद्धं ! कह व मुणी! कह मह भावो य इत्थ समयंमि! । धन्नो हं इय चिंतिय दुद्धं पडिलाहए ज्झत्ति ॥१२०॥ सुद्धणं भावेणं दाणं दितेण तेण हरिसेणं । देवाउयं निबद्धं अहो ! अहो ! दाणमाहप्पं ॥ १२१ ॥ इक्खुरसभरियकुंभो धणदत्तो एइ जाव गिहसमुहं । ता पिच्छइ मुणिजुयलं मग्गे तवउवसमसमेयं ॥ १२२ ॥ इक्खुरसेणं एग तुंवं भरिऊण वंदए तत्तो। थोवु ति तओ दुइयं भरिऊणं नमइ मुणिचलणे ॥ १२३ ॥ जा जाइ कि पिता वलिय ज्झचि भत्तीए भरई अकडाहं । तो पुण वि नमिअ पेच्छइ इक्खुरसं कुंभए थोवं | ॥१२४|| नीए गिहे अणस्थो दिजंतो कस्स पुजए एसो । इय चिंतिऊण सर्व पि देइ दुइयम्मि य कडाहे ॥१२५।। अह आउं पालित्ता मरंति ते दो वि तत्थ धणदेवो । देवत्तं संपत्तोधणदत्तो उण तुमं जाओ ॥१२६॥ भावेहिं चउहि खंडत्तएण दिनो मुणीण इक्खुरसो। चउभावदाणजोगा भजचउकं तओ तुज्झ ॥१२७ ॥ खंडत्तयभावाओ दुक्खं पत्तो सि तिनि वेलाओ । सुहभावदाणजोगा मह उण देवत्तणं जायं ।। १२८ ॥ जलनिहिपडिओ उप्पाडिऊण मुको मए नया उडवे । जं तुह सत्तू ARE AASANCHAR

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