Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पणे जो उ एयाओ । भासेह तस्स सिग्धं कुसुमवई देमि नियधूयं ॥ ८३ ॥ अह अवगणिओ तीए अइदुहिओ चितए मणे कुमरो । दिवंमि पराहुत्ते मणिच्छिअं होइ न कयावि || ८४ ॥ भममाणो सो पत्तो तित्थे तत्थेव नियइ ताओ वि । तिनि वि मह भज्जाओ न उणो लक्खति मं खुजं ।। ८५ ।। बहुदुक्ख भरियहियओ जा चिंतइ ताण संगमोवायं । वाइतं पडहं ता निसुणइ छिवह तं खुजो ॥ ८६ ॥ अह विंटणेण वेढिय फलहं कक्खाए खिविअ सो तत्थ । उवविसइ निवसमक्ख ताण सया संमि हरिसपरो ।। ८७ ।। उस्सारिय विंटणयं फलहं इत्थंमि कुणिय पभणेइ । जो दुहिजणेहिं जाओ सो पिच्छड् अक्खराई इहं (१) ॥ ८८ ।। अइरम्म अक्खराई लिहियाई इत्थ केण फलहिंमि । अनियंतो वि हु राया वक्खाणइ लज्जसंजुत्तो ॥ ८९ ॥ वाएऊणं खुजो वक्खाणइ ताण विम्हयं दितो । नियचरियं वित्थरओ लोओ वि हु सुणइ वक्खाणं ||१०|| सिंहलदीवे सिंहलसीहो मोत्तु वैरकरिकराओ। कुणिउं घणवइ भजं चडिउं वहणे पडइ जलहिं ॥ ९१ ॥ अनं कहेमि कल्ले इय भणिउं त्थयं पिबंधे। तो घणवई मुणेउं नियपियचरियं इमं सवं ॥ ९२ ॥ चणं मोणत्रयं तं पुच्छइ तस्स तत्थ किं जायें ? । सो वि पुणो पुण उट्ठइ पुणो पुणो पुच्छर सा वि ।। ९३ ।। तो भणइ फलहखंडं लहिउं जलहिं तरितु रयणउरे । रयणवई जीवाविअ परिणिय पत्तो मुद्दमि || ९४ || सो सचिवेणं जल हिंमि घल्लिओ एव कहिय उट्ठेइ । कल्ले अन्नं सवं कहिस्समह मुणिअ नियचरियं || ९५|| रणव तं पुच्छ किं जायं तस्स ? कहइ वामणओ निवडतो उप्पाडिय केण वि जलहीउ सो नीओ || ९६ || कम्मि वि तात्रसउडवे रूत्रवहं तत्थ परिणिउं कन्नं । खट्टाकंथाजुत्तो कुसुमपुरे इत्थ सो पत्तो ॥ ९७॥ रूववईए भणिओ जलमाणेउं जलासए
१ फलमि C २ करिवरकराओ C ३ चडिओ वहणे C ४ सुनिय C ५ संपत्ती BC

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