Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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पाइअकहासंगहे।
CRICROCRACKS
दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकम्।
तं कुलवई नमेउं भाजुओ चडिय खुडियखट्टाए । चिंतइ हियए गच्छसु जत्थ पिया धणबई मज्झ ॥ ६८॥ आगासेणं सा वि हु कुसुमपुरे जाव चाहिरुजाणे । संपत्ता ताव तओ रूवबई तं पयंपेड़ ॥ ६९ ॥ तिसिया हं नाह ! तुम सलिलं आणेसु कह व ठाणाओ । कथं खटुं भज मुत्तूण जलस्स गहणत्थं ।। ७० ।। कुर्वमि सो कुमारो पत्तो सप्पं निएइ तत्थेगं । म कसु त्ति मणिरं एयाओ पुरिसमासाए ।। ७१ ।। कुमरो नियमुचरियं मुयइ अहो तत्थ लग्गए नागो । कडा वत्थेण समं सो कुमरं डसइ करकमले ।। ७२ ॥ कुमरो विसप्पहावा संजाओ वामणो कुरूवो अ । सो तं भणइ सको पडि उघयारो को उचिओ ।। ७३ ।। पडिउवयारो नूगं एसो चिय तुज्झ जाणिही कुमरो!। अइसंकडंमि पडिओ खुजय ! सुमरेसु म ज्झत्ति ।। ७४ ।। इय भणिऊणं नागो पचो अईसणं तओ कुमरो । हरिसविसायसमेओ गहिय जलं चलइ सहस त्ति ।। ७५ ।। रूववईए सगासं आगंतूर्ण भणेइ वामणओ। पाणपिए! पियसु तुम अइसरसं सीयलं सलिलं ॥७६।। अन्नपुरिसो त्ति काउंसा वि हु वेगेण जाइ अन्नत्थ । जोअइ सर्व पि दिण नियदइयं न उण पिच्छेइ ।। ७७॥ पियमेलयंमि तित्थे तबइ तवं सा वि पिययमविओए। तिणि वि तुहिकाओ मीलियनयणाओ तिण्णे वि ।। ७८।। उक्तं च-एकाए पउमिणीए नेहो सलहिजए जए नूण | पाणप्पिअरविविरहे जा अनं पिच्छए नेव ॥७९।। तत्थ ठियाण ताणं आहारं देइ धम्मिओ लोओ। विगईए विणा कुणिऊण भोयणं निति दियहाई ॥८॥ नरनाहो कुसुमसरो वुचतं मुणिय ताण लोयाओ। चिंतइ होही किं पि हु महंतमिह कारणं एत्थ ।।८।। कोऊहलेण राया तत्थागच्छेइ परियणसमेओ। नयणवयणाण चिटुं नहु ताणं पिक्खए कहवि ।। ८२ ॥ तो पडहसद्दपुर्व राया
सुज A C। २ सुणिय C३ वयणनयणाण CI
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