Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 14
________________ पाइअ कहासंग | ॥ २ ॥ इय आसाए तीए चत्तं न हु जीवियं तत्थ ।। ३६ ।। उक्तं च-- वल्लहविरहे लोओ जं न मरह जलणदाहतुले वि । तं तस्स पुणवि संगम आसा अमिएण संकंतो ॥ ३७ ॥ गच्छंती वसिमेणं कुसुमपुरं घणवई वि संपत्ता । पियमेलयंमि तित्थे तवड़ तवं तत्थ सा दुसहं ॥ ३८ ॥ सिंहलसीहविओए अभिग्गहं गिण्हए इमं बाला । जह दइयं पिच्छिस्सं ता मोणवयं परिचसं ।। ३९ । सिंहलसीहो वि तर्हि पत्तेणेकेण फलहखंडेण । तरिऊणं जलरासिं रयणउरं पुरवरं पत्तो ॥ ४० ॥ तत्थ नइतीरदेसे निसुणिय दुसहं जणस्स अकंदं । पुच्छ एवं पुरिसं किमेयमह सो पयंपेइ ॥ ४१ ॥ इह रयणपहो राया पाणपिया रयणसुंदरी तस्स । रयणवई ताण सुया भुयगेणं अज सा डसिया ।। ४२ ।। गारुडिएहिं विमुक्का मुय त्ति काऊण तो चियामज्यो । पक्खित्ता जलणो वि हु पउणो तेणेस अकंदो ॥ ४३ ॥ अह भणइ तस्स समुहं कुमरो दंसेसु तं निवइकनं । जर पुण जीवद्द कहमवि एसा मह मंतजंतेहिं ॥ ४४ ॥ सुणिऊण तस्स वयणं पुरिसो तं नेह निवइपासंमि । भणइ अ एसो कुमरिं जीवाविस्सर कुणह दिहं ॥ ४५ ॥ दंसेह निवो कुमरिं चिंधाणि मुणित्तु चितए कुमरो । जीवइ एसा अजवि ता सर्त्ति कंपि पयडेमि ।। ४६ ।। दाऊण अंतरपडे चउद्दिसिं पवरमंतजोगेहिं । पउणीकया कुमारी तो सयलं हरिसियं नयरं ॥ ४७ ॥ राया नयरे धूयापहियजुओ पविसए विभूईए । तेण समं कन्नाए कुणेइ वारिजयं ज्झति ॥ ४८ ॥ भूमीए सुअइ कुमरो भं पाले घणवइविओए । रयणवइए पुट्ठो कह न तुमं सुयसि पल्लेके १ ।। ४९ ।। जइ कहियह सच्चं चिय ईसारोसं कुणेह ता एसा । इय चिंतिऊण कुमरो समउच्चिय उत्तरं देई ॥ ५० ॥ देसावलोअणत्थं णिग्गच्छंतस्स मह इइ पइन्ना । बंभ भूमीसयणं जा नियजणए न पेच्छेमि ।। ५१ ।। रयणवई तं पभणइ धन्नो सो नाह ! जीवलोगंमि । कुलदेवयं व दानविषये धनदेव धनदत्त कथानकम् । ॥ २ ॥

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