Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 15
________________ RADHAAR जणए जो आराहेइ अणवस्यं ॥ ५२ ॥ कुमरस्स गुणे दह्रण अहिणवे नरवई वि पुच्छेद । को सि तुम ? कत्तो व ति ? | साहए सो तओ सई ॥५३॥ तो हरिसपरो राया रयणवई विहवसंजुयं कुमरं । दिनामच्चसहायं सिंहलदीवंमि पेसेइ ॥५४॥ गच्छंताणं ताणं जलनिहिमज्झेण जाणवत्तेण । रयणवईए लुद्धो मंती अगणियकुलकलंकं ।। ५५॥ वक्खित्तमणं कुमरं जलनिहिमछमि खिवइ सो मंती । तं नाउं दुहियमणा अकंदं कुणइ रयणवई ॥५६॥ तो रुदनाममंती पभणइ दासो सया वि तुज्झ अहं । तं होसु मज्झ मजा अहऽनहा मरसि सिग्धं पि ॥ ५७॥ इय भणिया सा चिंतइ निकरुणो एस कुणइ एयं पि । रक्खामि नियं सील किं पि हु इह उत्तरं दाउं ॥ ५८ ॥ मयकिच्चं तस्स अहं कुणेमि नो जाव ता न बत्तत्वं । जं किं पि तुम भणिहिसि तओ परं तं चिय करिस्सं ॥ ५९॥ मती वि भणइ एवं हबउ तओ जति ताई वहणं पि । सहस त्ति | दुहाजायं रुटुं पिव रुद्दमंतिम्मि ॥ ६० ॥ सा लद्धफलहखंडा उत्तरिऊणं पयाइ कुसुमपुरे। रयणवई पियविरहे पत्ता पियमेलए तित्थे ॥ ६१ ॥ विरहानलतविअंगी जीवंतो एइ मज्झ जइ नाहो । ता मोणं मोत्तवं इय चिंतती तवं कुणइ ॥ ६२ ॥ मंती वि मच्छपिढि लहिउं उल्लंघिऊण जलरासिं । संपत्तो कुसुमपुरे ओलग्गह तं महीनाहं ॥ ६३ ।। कुसुमसरेणं दिन्नं पुहईनाहेण तस्स मंतिपयं । रजम्मि तमि रुद्दो पहाणभावं समावन्नो ॥ ६४ ॥ कुमरो वि हु निवडतो उप्पाडेऊण आसमपयंमि । केण वि मुक्को पणमइ सविम्हओ तावसं तत्थ ॥६५॥ तावसबई विदई तस्स सरीरंमि रायचिंधाई । रूववई निवकन्नं विवाहिउं हत्थमोयणए । ६६ । कथं खुडियं खर्ट्स अप्पइ अ कहेइ देइ टंकसयं । निचं पढमा दुइया उ जाइ मणवंछिए ठाणे ।। ६७॥ १ पभणइ C । २ कुसुमउरे C। ३ पुहवीनाहेण C । ४ समणुपत्तो C । ५ नियकन्नं BCI COLOCALCRECAUR ANGAROO

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