Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala

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Page 21
________________ श्रीसम्यक्त्वप्रभावे धनश्रेष्ठिकथानकम्-तं नत्थि जं न सिज्झइ संमत्तं इत्थ पालयंताणं । जह लच्छी संपत्ता | विउला धणसेट्टिणा पुत्विं ॥१॥ धणउरमत्थि पुरवरं धणुद्धरो नाम तत्थ भूवालो। सेट्ठी धणाभिहाणो धणदेवी भारिया तस्स ॥ २॥ धणचंदो धणपालो धणदेवो धणगिरी इमे चउरो। संजाया ताण सुया गंभीरा चउसमुद्द व्व ।। ३॥ धंधीधामी-धणदी-धणसिरिनामाउ ताण अह कमसो। जायाओ भजाओ निच्चं नेहेण जुत्ताओ।। ४।। धणसेट्ठी विहवेणं वित्थरिओ चिंतए सुहमईए । रयणीइ चरिमजामे लच्छिसरूपं विसे सेण ॥५॥ पाएणं आजम्मं लच्छीए थिरत्तणं न पिच्छेमि । पुरिसुत्तमो वि चत्तो जीए निचं पि अणुरत्तो ।। ६ ।। उक्तं च-खणदिवा खणनट्ठा लच्छी विज्जु व कुडिल सम्भावा । इय मुणिऊणं तीए केण वि गवो न कायवो ॥ ७ ॥ इय लच्छीइ इमाए गिहामि फलं सयं विद्वत्ताए । कारविय जिणाययणं दुत्तरभवजलहिबोहित्थं ।। ८॥ तो जाइ निवसयासे थालं भरिऊण रम्मरयणाणं । तं गहिऊणं राया भणइ धणं वरसु मणइष्टुं ? ॥९॥ जिणभवणजोग्गभूमि मग्गइ सो देइ तं धणो कुणइ । सोवन्नथंभसोवाणपंतिवरनीलमणिपडिमं ॥ १०॥ गयणग्गलग्गसिहरं अणेगलहुदेवउलियसंजुत्तं । कणयमयकलसदंडं सिवपुरपहगइविमाण व ॥११।। फल कुसुमगंधनेवेजसलिल अक्खयपईवधृवेहि । तिकालं जिणपडिमं सो पूयइ भत्तिसंजुत्तो॥ १२ ॥ इय सो गमेइ कालं जा किं पि हु हरिसनिभरो सेट्ठी। ता पुवकम्मभावा जं जायं ते निसामेह ।। १३ ।। जं दत्वं भूमीए खितं तं वंतरेहिं अवहरियं । जं दिन्नं लोयाणं तं नो कहमवि लहइ सेट्ठी ॥१४॥ जं वहणे पक्खित्तं तं पुण जलहिम्मि सयलमवि थकं । किं बहुणा ? रोरसमो सेट्ठी जाओ धणो ज्झत्ति ॥१५॥ १ इयमार्या A संज्ञकप्रतावेवास्ति । २ तस्स तं सुणसु A। ३तं पि न कहमवि A ।

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