Book Title: Paiakaha Sangaha
Author(s): Manvijay, Kantivijay
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala
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नमः श्रीवर्द्धमानस्वामिने ।
सकलागम रहस्य वेदि -आचार्य श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरेभ्यो नमः । सिरिपउमचंद रिसीस विरश्यविकम सेणचरियन्तग्गय
पाइअकहासंगह |
दानविषये धनदेवधनदत्तकथानकम् - जो दाणं मत्तीए वियरह सो पावर विउलरिद्धिं । धणदेवो घणदत्तो सहोय इत्थदिता ॥ १ ॥ सिंहलदीवो दीवो नरनाहो सिंहलेसरो तत्थ । मजा सिंहलनामा सिंहलसीहो सुओ ताणं ॥ २ ॥ सिंहलसीहो पत्तो वसंतसमयंमि बाहिरुजाणे । हाहारखं तहिं सो निसुणेई कन्नसलं व ॥ ३ ॥ किं १ किं १ किं ? ति भणतो गओ
जाता सोनियई । एवं कन्नं मयगलकरसंनिहियं विलवमाणि ॥ ४ ॥ न हु ताय ! रक्खसि तुमं जणणि ! तुमं पि हु करेसि नो करुणं । कुलदेवयाउ ! तुम्हे वि इह समए कत्थ वि गयाओ १ ।। ५ ।। किं अस्थि कोइ पुरिसो करुणाउवयारसाहससमेओ १ । जो मं रक्खइ सिग्धं एयाओ करिकयंताओं ॥ ६ ॥ तं पिच्छिअ सो चिंतह दीणस्स करेड़ जो न उवयारं । सो किं नेव विलीणो जणणीए उयरमज्झमि ॥ ७ ॥ उक्तं च- किं ताणं जम्मेण वि जणणीए पसवदुक्खजणगेण । १ तुम्हि वि AB

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