Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 12
________________ बाल दुसरा । जाति पाँच - - १. एकेन्द्रिय जाति २. द्वीन्द्रिय जाति ३. त्रीन्द्रिय जाति ४. चतुरिन्द्रिय जाति ५. पञ्चेन्द्रिय जाति = व्याख्या जीव अनन्त हैं । वे सभी समान नहीं हैं । विकास क्रम के आधार पर समग्र संसारी जीवों को पाँच विभागों में विभक्त किया गया है । समस्त जीवों में चैतन्य गुण समान होने पर भी उस गुण की अभिव्यक्ति में साधनभूत इन्द्रियों के विकास क्रम को लेकर ही संसारी जीवों के यहाँ पर पाँच भेद किये गये हैं । जाति शब्द के दो अर्थ हैं-जन्म और समूह । यहाँ पर. समूह अर्थ ही ठीक बैठता है । एकेन्द्रिय जाति का अर्थ है-ऐसे प्राणियों का समूह जिनके केवल एक ही इन्द्रिय है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय जाति तक का अर्थ समझ लेना चाहिए । इन्द्रिय शब्द का अर्थ है ज्ञान का साधन । जिसके द्वारा आत्मा को पदार्थों का ज्ञान होता है । इन्द्रिय कितनी हैं ? पाँच । कुछ लोगों की मान्यता - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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