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अवधि ज्ञान – इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना
आत्मा द्वारा मर्यादा पूर्वक रूपी द्रव्य का ज्ञान ।
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मन: पर्याय ज्ञान – इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा द्वारा संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जानने वाला ज्ञान ।
केवल ज्ञान—मूर्त, अमूर्त, सूक्ष्म, स्थूल आदि त्रिकाल - वर्ती समस्त पदार्थ और उनकी सम्पूर्ण पर्यायों को एक साथ जानने वाला ज्ञान; अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थ और उनकी सम्पूर्ण पर्यायों को बिना किसी बाह्य साधन के साक्षात् आत्मा द्वारा एक साथ जान लेने वाला ज्ञान ।
प्रत्येक ज्ञान का आवरण होता है, जैसे मति ज्ञान-आवरण, श्रुतज्ञान आवरण आदि । इस आवरण के क्षयोपशम एवं क्षय होने पर ही वह ज्ञान होता है । जैसे मति ज्ञानावरण के क्षयोपशम से मतिज्ञान । प्रथम के चार आवरणों का क्षयोपशम ही होता है । केवल ज्ञानावरण का क्षयोपशम नहीं होता, पूर्ण क्षय ही होता है । अवधि आदि तीन ज्ञान प्रत्यक्ष हैं, अवधि और मनः पर्याय विकल; अर्थात् अपूर्ण प्रत्यक्ष हैं और केवल ज्ञान सकल; अर्थात् पूर्ण प्रत्यक्ष है ।
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मिथ्यात्व - सहचरित मति, श्रुत और अवधि क्रम से मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान और अवधि अज्ञान कहे जाते हैं । यहाँ पर अज्ञान का अर्थ ज्ञान का अभाव नहीं,
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