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नव तत्त्वों में मुख्य तत्त्व दो हैं..जीव और अजीव । शेष सभी तत्त्व जीव और अजीव की पर्याय-विशेष ही हैं । उनका अपना पदार्थ रूप से स्वतन्त्र कोई अस्तित्व नहीं है ।
जिसमें चेतना है, वही जीव है, और जिसमें चेतना नहीं, वह अजीव हैं । ये दोनों स्वतन्त्र तत्त्व हैं । ___ पुण्य और पाप का समावेश अजीव तत्त्व में हो जाता है क्योंकि पुण्य और पाप पुद्गल रूप हैं । पुण्य शुभ पुद्गल और पाप अशुभ पुद्गल है । पुण्य और पाप के हेतु जीव के शुभ अशुभ भाव हैं, अतः उन्हें व्यवहार दृष्टि से जीव भी कह सकते हैं । - पाप और पुण्य का अन्तर्भाव आस्रव और बन्ध में भी किया जा सकता है । आस्रव और बन्ध के दो-दो रूप हैं शुभ आस्रव और अशुभ आस्रव, तथा शुभ बन्ध और अशुभ बन्ध । इनमें शुभ पुण्य हैं और अशुभ पाप
द्रव्य आस्रव और द्रव्य बन्ध तत्त्व तो स्पष्ट ही पुद्गल हैं, पुद्गल की पर्यायविशेष ही हैं । अतः इनका समावेश अजीव तत्त्व में हो जाता है । भाव आस्रव और भाव बन्ध को व्यवहार दृष्टि से जीव का भाव होने से जीव भी कह सकते हैं ।
निश्चय दृष्टि से इस प्रकार पुण्य और पाप, आस्रव
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