Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ है, सूक्ष्म का त्याग नहीं कर सकता । क्योंकि वैसा करने पर उसका गृहस्थ जीवन चल सकना कठिन है । चतुर्थ व्रत के रूप में यदि वह पुरुष है, तो स्व-दार-सन्तोष-व्रत और यदि वह नारी है, तो स्व-पति-सन्तोष-व्रत ग्रहण करता है । यदि कोई स्त्री- पुरुष सम्बन्धी भोग का पूर्ण त्याग भी करता है, तो वह परस्पर के स्पर्श आदि का एवं मानसिक वासना का त्याग नहीं कर पाता । पञ्चम व्रत के रूप में वह अपने धन-सम्पत्ति रूप परिग्रह का परिणाम निर्धारित करता है । | तीन गुणव्रत गुणव्रत का अर्थ है-अहिंसा आदि पाँच मूल व्रतों को पुष्ट करने वाले और उनमें अभिवृद्धि करने वाले नियम । चार दिशा, चार विदिशा और ऊर्ध्वदिशा तथा अधोदिशा-इन दश दिशाओं का परिमाण निर्धारित करना, ताकि सीमा से बाहर, मर्यादा से बाहर गमन और आगमन न हो । यह दिशा परिमाण गुणव्रत है, इसमें क्षेत्र की मर्यादा की जाती है । उपभोग; अर्थात् एक बार भोग के काम में आने वाली खाने-पीने आदि की वस्तु और परिभोग; अर्थात् बार-बार भोग के काम में आने वाली पहिनने-ओढ़ने आदि की वस्तु-इनकी मर्यादा करना । जैसे—आनन्द - Jain Education International · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102