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श्रावक ने छब्बीस बोल की मर्यादा की थी । यह उपभोग परिभोग परिणाम गुणव्रत है ।
श्रावक प्रयोजन के लिए तो हिंसा आदि करता है, परन्तु बिना प्रयोजन के तो हिंसा आदि का उसको परित्याग होता है । अतः अनर्थदण्ड का; अर्थात् बिना प्रयोजन के हिंसा आदि का त्याग, अनर्थदण्ड विरमण गुणव्रत है ।
चार शिक्षा व्रत
शिक्षा का अर्थ है, निरन्तर धर्माचरण का अभ्यास । धीरे-धीरे पूर्ण निवृत्तिमय जीवन के योग्य साधना की ओर अग्रसर होना, इस शिक्षा व्रत का मुख्य उद्देश्य है ।
नित्य प्रति उभय काल में सामायिक करना, सामायिक शिक्षा व्रत है । दिशाव्रत में जो जीवन भर के लिए क्षेत्र की मर्यादा की थी, उसको प्रतिदिन के लिए और अधिक सीमित करना, देशावकाशिक शिक्षा व्रत है । अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व दिवसों में पौषध व्रत एवं दयाव्रत करना पौषध शिक्षा व्रत है और द्वार पर आये साधु, श्रावक सम्यग्दृष्टि आदि अतिथि को सम्मान पूर्वक यथाशक्ति दान देना, अतिथि संविभाग शिक्षा व्रत है । ये चार शिक्षा व्रत हैं । इस प्रकार श्रावक के बारह व्रत हैं ।
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