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बोल पच्चीसवाँ
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चरित्र पाँच
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१. सामायिक चारित्र २. छेदोस्थापन चारित्र ३. परिहार विशुद्धि चारित्र४. सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र ५. यथाख्यात चारित्र
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व्याख्या आत्मा को निज स्वरूप में स्थित रखने का प्रयत्न चारित्र है । चारित्र, विरति, संयम और संवर ये सब एकार्थक शब्द हैं । चारित्र का अर्थ है-अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति । तत्वतः आस्रव के निरोध को चारित्र कहा जाता है ।
शास्त्रीय भाषा में चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से, उपशम से और क्षयोपशम से होने वाले आत्मा के विरतिरूप परिणाम को चारित्र कहते हैं । अथवा आत्मा का सावध योग से निवृत्त होकर निश्वद्य भाव में प्रवृत्त होना चारित्र है । चारित्र के सामायिक आदि पाँच भेद हैं ।
सामायिक चारित्र-सामायिक; अर्थात् सम-भाव । सम भाव की साधना को सामायिक चारित्र कहते हैं । अथवा सावध प्रवृत्ति का परित्याग और निरवद्य प्रवृत्ति का आसेवन सामयिक चारित्र है।
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