Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 99
________________ छेदोपस्थापन चारित्र-जिस चारित्र में पूर्वगृहीत चारित्रपर्याय का छेद एवं महाव्रतों में उपस्थापन; अर्थात् आरोपण होता है, उसे छेदोपस्थापन चारित्र कहते हैं । यह चारित्र पूर्व चारित्र को छेदन कर के आता है । अतः इसे छेदोपस्थापन कहते हैं । उक्त चारित्र के दो भेद हैं निरतिचार और सातिचार । मध्य के २२ तीर्थङ्करों में से जब २३वें तीर्थङ्कर के मुनि या आर्याएँ, २४वें तीर्थङ्कर के शासन में सम्मिलित होते हैं, तब पूर्वगृहीत सामायिक चारित्र का छेदन कर महाव्रतारोपण रूप छेदोपस्थापन चारित्र ग्रहण करते हैं । यह निरतिचार; अर्थात् दोष-रहित स्थिति में छेदोपस्थापन चारित्र का ग्रहण है । इसी प्रकार प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन में सर्व प्रथम सामायिक चारित्र ग्रहण किया जाता है, अनन्तर अमुक काल के बाद, जो बड़ी दीक्षा के रूप में महाव्रतारोपण किया जाता है, यह भी निरतिचार छेदोपस्थापन चारित्र है । ये निरतिचार छेदोपस्थापन एक प्रकार से संघ में सम्मिलित करने की एक प्रक्रिया है और जब किसी दोष-विशेष के कारण पूर्व दीक्षा पर्याय का छेदन कर प्रायश्चित रूप में आत्मशुद्धि के लिए पुनः महाव्रतारोपण की क्रिया की जाती है, वह सातिचार छेदोपस्थापन चारित्र है । परिहार विशुद्धि चारित्र-जिस चारित्र में परिहार - Jain Education International For PvateaPersonal Use Only www.jainelibrary.org

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