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व्याख्या
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शास्त्रों में दो प्रकार की परिज्ञा; अर्थात् बुद्धि कही गई है. ज्ञ परिज्ञा और प्रत्याख्यान परिज्ञा । ज्ञ परिज्ञा से पदार्थों का स्वरूप जाना जाता है, कि कौन पदार्थ कैसा है ? हेय या उपादेय ? और प्रत्याख्यान परिज्ञा से हेय या वस्तु का त्याग और उसकी पद्धति का विचार होता है । प्रस्तुत बोल में प्रत्याख्यान परिज्ञा का स्वरूप बताया है, कि हेय वस्तु का त्याग कैसे करना चाहिए ।
पाप का परित्याग जीवन की साधारण घटना नहीं है, कि किसी हेय वस्तु को छोड़ दिया और बस त्याग हो गया । इस प्रकार के त्याग तो मिथ्यादृष्टि जीव भी करते रहते हैं । किन्तु वह त्याग प्रत्याख्यान की कोटि में नहीं आता । प्रत्याख्यान की कोटि के लिए आवश्यक है, कि कृत, कारित और अनुमत तथैव मन, वचन और काय के स्वरूप का तथा इनके पारस्परिक सम्बन्धों का गम्भीरता से विचार किया जाय । यही विचार प्रस्तुत बोल में किया गया है ।
भङ्ग का अर्थ हैं—विकल्प, प्रकार एवं विभाग रूप रचना-विशेष । इस अर्थ के अनुसार प्रत्याख्यान के ४६ भङ्ग हैं । अन्तिम ३३ के अङ्क का भङ्ग पूर्ण है, क्योंकि यह नवकोटि प्रत्याख्यान है । उनमें किसी भी प्रकार के अप्रत्याख्यान के अंश की छूट नहीं है । शेष भङ्ग अपूर्ण हैं; अर्थात् उनमें किसी-न-किसी रूप में अप्रत्याख्यानांश की छूट रह जाती
है।
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