________________
साधु इन पाँचों महापापों को न स्वयं करता है, न दूसरों से करवाता है और न करने वालों का अनुमोदन करता है— मन से, वचन से और काय से । अतः साधु के इन व्रतों को शास्त्र में महाव्रत कहा गया है ।
महाव्रत का अर्थ है - बड़ी प्रतिज्ञा, महान प्रतिज्ञा, पूर्ण प्रतिज्ञा । उसमें किसी भी प्रकार की स्थूल एवं सूक्ष्म की छूट नहीं होती ।
साधु पूर्ण अहिंसा, पूर्ण सत्य, पूर्ण अस्तेय, पूर्ण ब्रह्मचर्य और पूर्ण अपरिग्रह का परिपालन करता है । अतः उसकी प्रतिज्ञा को महाव्रत कहना उचित ही है ।
Jain Education International
( ८७ )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org