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बोल तेईसवाँ
साधु के पाँच महाव्रत
१. अहिंसा महाव्रत
३. अस्तेय महाव्रत । ५. अपरिग्रह महाव्रत
२. सत्य महाव्रत ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत
व्याख्या साधु को शास्त्र में 'श्रमण' कहा गया है । अतः साधु धर्म को 'श्रमण-धर्म' कहना उचित ही है । श्रावक धर्म से आगे की कोटि श्रमण-धर्म की है । साधु होने के लिए केवल बाह्य भेष बदल लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके लिए जीवन को ही बदलना पड़ता है । बाने के साथ बान भी बदलनी पड़ती है, तभी सच्ची साधुता प्राप्त होती है । . संसार में पाँच महापाप हैं-हिंसा, असत्य, स्तेय (चोरी), अब्रह्मचर्य (कामवासना) और परिग्रह (पदार्थों की ममता, आसक्ति) ।
साधु इन पाँच महापापों का त्याग तीन करण और तीन योग से करता है । करण का अर्थ है—कृत, कारित और अनुमत; अर्थात् करना, कराना और अनुमोदन करना । योग का अर्थ है-मन, वचन और काय ।
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