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सम्यक्; अर्थात् विवेकपूर्वक तप। जीव इन साधनों से मोक्ष प्राप्त कर सकता है ।।
जीव का स्वभाव ऊर्ध्व गमन है । वह जो अधोगमन और तिर्यग् गमन करता है, उसमें जीव के कर्म कारण हैं । जैसे लेप सहित तुम्बा जल में नीचे बैठ जाता है, परन्तु उस पर से मिट्टी का लेप हट जाने से वही तुम्बा ऊपर; अर्थात् जल की सतह पर आ जाता है । यही स्थिति आत्मा की भी है । कर्म सहित आत्मा नीचे; अर्थात् संसार दशा में जाता है, और कर्म रहित होने पर वही आत्मा अपनी सहज स्वभाव गति से ऊपर आ जाता है; अर्थात् मोक्ष पा लेता है ।
एक बार जब आत्मा मुक्त हो जाती है, तो फिर कभी संसार में नहीं आती । क्योंकि मुक्त आत्मा में संसार का कारण ही नहीं रहता । जैसे दग्ध बीज को कितना ही पानी दिया जाय, कितनी भी उर्वर भूमि में बोया जाये, पर वह बीज कभी अंकुरित नहीं हो सकता, वैसे ही जिस आत्मा में से बन्ध और बन्ध के कारणों का अभाव हो गया है, जो मुक्त हो गया है, वह फिर कभी संसार में नहीं आता ।
जिन जीवों में मोक्ष पाने की योग्यता है, वे ही मोक्ष प्राप्त करते हैं, उनको भव्य कहते हैं, जिन जीवों में मोक्ष पाने की योग्यता नहीं, वे अभव्य कहलाते हैं ।
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