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पुद्गल—जिसमें पूरण; अर्थात् मिलन और गलन; अर्थात् पृथक् होने का स्वभाव है, वह पुद्गल है । जो मिलता है, बिछुड़ता है, वह पुद्गल है । जिसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-ये चार गुण हों, वह पुद्गल है । 'पुद्' और 'गल' इन दो धातुओं के संयोग से पुद्गल शब्द बना है, जिसका अर्थ है संश्लेष और विश्लेष । ईंट, पत्थर, लकड़ी, मिट्टी आदि- ये सब पुद्गल हैं ।
इन षड्द्रव्यों में एक काल को छोड़कर शेष सभी द्रव्य अस्तिकाय रूप हैं । अस्ति का अर्थ प्रवेश है, काय का अर्थ समूह है; अर्थात् जो प्रदेशों का समूह रूप हो, वह अस्तिकाय है ।
धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल के पाँचों द्रव्य, प्रदेश समूहात्मक हैं । अतः वे अस्तिकाय कहे जाते हैं । परन्तु काल के प्रदेश नहीं होते । अतः काल अस्तिकाल नहीं है ।
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