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चेतना शून्य तत्त्व को अजीव कहते हैं । अजीव के पाँच भेद हैं-धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ।
धर्म गतिशील, जीव और पुद्गल तत्त्वों की गति में सहायक जो तत्त्व हैं, वह धर्म है । गति-शक्ति जीव
और पुद्गल की अपनी है, परन्तु धर्म उसमें निमित्त कारण, सहकारी कारण बन जाता है । धर्म के बिना जीव और पुद्गल स्वभावतः गतिशील होते हुए भी गति नहीं कर सकते । जैसे मछली में तैरने की शक्ति होने पर भी वह जल के बिना नहीं तैर सकती ।
अधर्म स्थितिशील, जीव और पुद्गल तत्त्वों की स्थिति में सहायक जो तत्त्व हैं; वह धर्म है । जीव
और पुद्गल दोनों में गति के समान ही स्थित होने का भी अपना स्वभाव है, पर उसमें निमित्त अधर्म है । जैसे पथिक के लिए वृक्ष की छाया । ठहरता तो पथिक स्वयं ही है, परन्तु छाया उसमें निमित्त कारण, सहकारी कारण बन जाती है । ठीक इसी प्रकार जीव एवं पुद्गल में ठहरने का स्वभाव है, परन्तु अधर्म उसमें निमित्त है । बिना इसके कोई भी पदार्थ स्थिर नहीं हो सकता ।
आकाश—जो अवकाश देता है, आश्रय देता है, वह आकाश है । आकाश सबका आधार है, शेष सभी द्रव्य आधेय हैं । व्यवहार दृष्टि से त्रस एवं स्थावर जीवों का आधार पृथ्वी, पृथ्वी का आधार जल, जल का आधार
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