________________
और बन्ध ये चार तत्त्व अजीव तत्त्व में आ जाते हैं और व्यवहार दृष्टि से जीव तत्त्व में भी गिने जा सकते
संवर, निर्जरा और मोक्षये तीनों जीव की ही पर्याय-विशेष हैं । आस्रवनिरोध रूप संवर जीव की आध्यात्मिक शुद्धि है । निर्जरा भी अंशतः कर्म-क्षय रूप होने से आत्मा की एक प्रकार की शुद्धि ही है । और मोक्ष तो जीव की पूर्ण शुद्धि का ही नाम है । अतः संवर, निर्जरा और मोक्ष का समावेश जीव तत्त्व में हो जाता है ।
अतः संक्षेप में दो ही तत्त्व हैं—जीव और अजीव । शेष इन दोनों का ही विस्तार है । ___इन नव तत्त्वों को ज्ञेय, उपादेय और हेय इन तीन भागों में भी विभक्त किया जा सकता है ।
जीव और अजीव ज्ञेय हैं । पाप, आस्रव और बन्ध हेय हैं । पुण्य कथंचित् हेय और कथंचित् उपादेय है । मोक्ष की दृष्टि से हेय है, किन्तु अशुभ से निवृत्ति के लिए कथंचित् उपादेय भी है । आत्मा अशुभ में न जाये, इसलिए शुभ का अवलंबन किया जाता है । संवर, निर्जरा तथा मोक्ष उपादेय हैं । ज्ञेय वह है, जो जानने के योग्य है । उपादेय वह है, जो ग्रहण करने के योग्य है । हेय वह है, जो छोड़ने के योग्य है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org