Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 73
________________ अन्तिम पाँच दण्डक १. तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय का एक दण्डक २. मनुष्य का एक दण्डक ३. व्यन्तर देव का एक दण्डक ४. ज्योतिष देव का एक दण्डक ५. वैमानिक देव का एक दण्डक व्याख्या जीव अपनी शुभ और अशुभ प्रवृत्ति के कारण शुभाशुभ कर्मों का संचय करता रहता है । फिर उन शुभ एवं अशुभ कर्मों का फल भोगने के लिए चार गतियों में परिभ्रमण करता है । अतः जहाँ जीव स्वीकृत कर्मों का फल भोगता है, उसे दण्डक कहते हैं; अर्थात् कर्म फल या दण्ड भोगने के स्थान को इस बोल में २४ भागों में विभक्त करके उन स्थानों का नाम दण्डक रख दिया गया है । नरक गति का दण्डक एक, तिर्यञ्च गति के नौ, मनुष्य गति का एक और देवगति के तेरह । इस प्रकार सब मिलाकर चौबीस दण्डक होते हैं । Jain Education International ( ६८ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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