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पद्म लेश्या
क्षमावान् निरतस्त्यागे, गुरु देवेषु भक्तिमान् । शुद्ध-चित्तः सदाऽऽनन्दीः, पदम-लेश्याऽधिको नरः ।
पद्म लेश्या वाला जीव क्षमाशील और त्याग-निरत होता है, देव और गुरु की भक्ति करता है, उसका चित्त सदा प्रसन्न रहता है; अर्थात् वह सदा प्रमुदित रहता
शुक्ल लेश्या
राग-द्वेष-विनिर्मुक्तः, शोक-निन्दा-विवर्जिताः । परमात्मभावसम्पन्नः, शुक्ल-लेश्योऽधिको नरः ॥
शुक्ल लेश्या वाला जीव राग और द्वेष से रहित होता है । अथवा मन्द राग और मन्द द्वेष वाला है । वह शोक और निन्दा के वेग से भी परे रहता है । पर शुक्ल लेश्या वाला अन्ततः परमात्मदशा को प्राप्त कर लेता है । यह आत्मा परम शुद्ध आत्मा होता है । अन्ततः परम शुद्ध आत्मा में कोई लेश्या नहीं होती ।
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