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आर्त ध्यान – मनोज्ञ एवं प्रिय वस्तु के वियोग में और अमनोज्ञ एवं अप्रिय वस्तु के संयोग में, चित्त में जो एक प्रकार की अनवरत एकाग्र चिन्तना होती है. उसको आर्त ध्यान कहते हैं ।
रौद्र ध्यान - हिंसा में, असत्य में, चोरी में और धन आदि के ममत्वभाव में मन को एकाग्र करना, मन को जोड़ना, रौद्र ध्यान है । इसमें परिणाम अत्यन्त क्रूर होते हैं । इसमें जीव के रौद्र; अर्थात् भयंकर एवं निर्दय भाव रहते हैं । अतः इसको रौद्र ध्यान कहते हैं ।
धर्म ध्यान - जिसमें श्रुत और चारित्र रूप धर्म का चिन्तन किया जाता है, उसे धर्म ध्यान कहते हैं । सूत्रार्थ का चिन्तन करना, व्रतों का विचार करना तथा संसार की असारता का मनन करना - यह धर्म ध्यान है ।
शुक्ल ध्यान — जो ध्यान कर्म - मल को तीव्र गति से दूर करता है, वह शुक्ल ध्यान है । अथवा पर अवलम्बन के बिना निर्मल आत्मस्वरूप का अखण्ड अनुभव शुक्ल ध्यान है ।
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