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आत्मा आठ
१. द्रव्य आत्मा
३. योग आत्मा
५. ज्ञान आत्मा
७. चारित्र आत्मा
बोल पन्द्रहवाँ
२. कषाय आत्मा
४. उपयोग आत्मा
६. दर्शन आत्मा
८. वीर्य आत्मा
व्याख्या
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आत्मा एक शाश्वत तत्त्व है । वह अतीत में भी था, वर्तमान में भी है, और भविष्य में भी रहेगा । उसकी न उत्पत्ति है और न उसका विनाश । फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन होता ही नहीं । द्रव्य से नित्य होकर भी आत्मा पर्याय से अनित्य है, परिवर्तनशील है । जीव के परिणामों का कोई अन्त नहीं है । प्रस्तुत बोल में मुख्यतः आत्माओं की आठ स्थिति का वर्णन है ।
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द्रव्य आत्मा— आत्मा असंख्यात प्रदेशों का समुदाय है । आत्मा अखण्ड है, वह कोई असंख्य प्रदेशों से संयुक्त रूप में निमित्त नहीं हुआ है । प्रदेश, कल्पनामात्र बुद्धि - परिकल्पित हैं । वे प्रदेश आत्मा से पृथक् तथा विभाजित नहीं किये जा सकते ।
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