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मोक्ष तत्त्व के चार भेद १. सम्यग् ज्ञान २. सम्यग् दर्शन ३. सम्यग् चारित्र ४. सम्यग् तप
व्याख्या नव तत्त्वों में यह अन्तिम तत्त्व है । संवर और निर्जरा की साधना से आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकता
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बन्ध और बन्ध के कारणों का जब अभाव हो जाता है और जब आत्मा की शुद्धता का विकास हो जाता है, तब आत्मा की उस सर्वथा और सर्वदा शुद्ध स्थिति को मोक्ष कहा जाता है । आत्म-गुणों का पूर्ण विकास ही वस्तुतः मोक्ष है ।
मोक्ष, मुक्ति और निर्वाण एकार्थक शब्द हैं । कर्म-बद्ध आत्मा का कर्ममुक्त हो जाना—यह मोक्ष है । मोक्ष आत्मा की एक पूर्ण अखण्ड अवस्था है । जहाँ पूर्णता होती है, वहाँ विभिन्न प्रकार के भेद एवं प्रकार नहीं होते । इसीलिए प्रस्तुत बोल में मोक्ष तत्त्व के भेद बताते हुए उसकी प्राप्ति के चार साधन बताए गये हैं । अतः यह व्यवहार से मोक्ष के भेद हैं, निश्चय से नहीं ।
मोक्ष प्राप्ति के उपर्युक्त चार साधन शास्त्र में कहे गये हैं- सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और
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