________________
बल्कि कुत्सित ज्ञान समझना चाहिए | कुत्सित ज्ञान का अर्थ है, मिथ्या ज्ञान । विपरीत ज्ञान; अर्थात् वह ज्ञान जो मोक्षाभिमुखी न होकर संसाराभिमुखी हो ।
चक्षुर् दर्शन – चक्षुर्दशनावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर चक्षु द्वारा पदार्थों का जो सामान्य रूप से बोध होता है ।
अचक्षुर् दर्शन - अचक्षुर्दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर चक्षु को छोड़ कर शेष इन्द्रियों से और मन से पदार्थों का जो सामान्य रूप से बोध होता है ।
अवधि दर्शन अवधि दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर, इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना रूपी पदार्थों का जो सामान्य बोध होता है ।
केवल दर्शन केवल दर्शनावरण कर्म के क्षय होने पर साक्षात् आत्मा द्वारा सकल पदार्थों का जो सामान्य बोध होता है, उसे केवल दर्शन कहते हैं ।
Jain Education International
( २६ )
For Private & Personal Use Only
8
www.jainelibrary.org