Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 36
________________ और कर्म से रहित जीव शुद्ध होता है । साधना के द्वारा जीव शुद्ध, बुद्ध और मुक्त हो सकता है । • शास्त्र में मुख्य रूप से कर्म के दो भेद हैं-भाव कर्म और द्रव्य कर्म । राग द्वेष और कषाय आदि भाव कर्म हैं । भाव कर्म के निमित्त से कर्म वर्गणा के पुद्गलों की एक विशेष परिणति द्रव्य कर्म है । ऊपर जो कर्म के आठ भेद हैं. वे द्रव्य कर्म हैं । , ज्ञानावरण कर्म-आत्मा के विशेष बोध रूप ज्ञान गुण को आच्छादित करने वाला कर्म । जिस प्रकार आँख पर कपड़े की पट्टी लपेटने से वस्तुओं के देखने में रुकावट पड़ती है, उसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म के प्रभाव से आत्मा को पदार्थों का विशेष बोध करने में रुकावट पड़ती है । जैसें सघन बादलों से सूर्य के ढक जाने पर भी उसका प्रकाश उतना अवश्य रहता है कि जिससे दिन-रात का भेद समझा जा सके । वैसे ही कैसा भी प्रगाढ़ ज्ञानावरण कर्म हो, उसके रहते हुए भी आत्मा में इतना ज्ञान तो अवश्य रहता है, कि जिससे वह जड़ पदार्थों पृथक् किया जा सके । से दर्शनावरण कर्म-आत्मा की सामान्य बोध रूप दर्शन शक्ति को, आत्मा के दर्शन गुण को ढकने वाला कर्म । यह कर्म द्वारपाल के समान है । जैसे द्वारपाल राजा Jain Education International ( ३१ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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